Pages

Saturday, September 17, 2011

करे कोई, पर भरता है हर कोई

          एक था पंडित जाना-माना। प्रकांड विद्वान। एक प्रसिद्ध मंदिर का था प्रधान पुजारी। मंदिर के वार्षिकोत्सव की तैयारियां चल रही थीं। कई-कई व्यक्ति लगे थे इन तैयारियों में। पंडित जी उत्साह-उमंग से हर एक तैयारी का जायजा ले रहे थे। एक व्यक्ति एक बड़ी सी पताका को मंदिर के गुंबद पर फहराने की तैयारी कर रहा था। पताका लेकर वह गुंबद पर चढ़ गया। उसी समय पंडित जी मंदिर की गैलरी में खड़े होकर उसे देख रहे थे। वह व्यक्ति अचानक उस गुंबद से नीचे खड़े पंडित जी पर गिर पड़ा। उस व्यक्ति का तो कुछ नहीं बिगड़ा। पंडित जी की गरदन टूट गई। पंडित जी को शीघ्र हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। तब पंडित जी से किसी ने पूछा, ‘यह कैसे हो गया? यह क्यों हो गया?’ पंडित जी का जवाब था, ‘यह कोई जरूरी नहीं है कि दूसरों की गलतियों का आप शिकार नहीं हो सकते। अगर दूसरा गिरता है, तो गरदन मेरी भी टूट सकती है।’
अब विचार कीजिए। स्वयं का आत्मविश्लेषण कीजिए। खुद की परखकीजिए।


-स्वयं की गलतियों का परिणाम कौन-कौन प्राप्त करता है?
-कोई व्यक्ति अपनी भूल का परिणाम स्वयं कितना भुगतता है?
-दूसरों के द्वारा की गई गलतियों का परिणाम परिक्षेत्र कितना होता है।
-वह घटना याद करें, जब स्वयं की गलती का परिणाम स्वयं ने न भुगता हो?
-वह घटना, जब दूसरों के द्वारा की गई गलती केपरिणाम आपको भुगतने पड़े।
-मेरी ऐसी कौन सी गलतियां हैं, जो मैं अकसर करता हूं?
-मेरी गलतियां मुझे कितना सिखाती हैं?


यह जरूरी नहीं है कि कोई अन्य व्यक्ति कोई कार्य करे और उसका आप पर शर्तिया असर न पड़े। यह जरूरी सत्य है कि अन्य व्यक्ति कोई गलती करें, तो शत-प्रतिशत स्वयं पर प्रभाव जरूर पड़ता है। यह प्रभाव चाहे तत्काल न पड़े, मगर प्रभाव पड़ता जरूर है। हर गलती कीमत मांगती है। हर किया गया कार्य हमारे व्यक्तित्व का विस्तार होता है। जो कुछ सामने दिखाई पड़ता है, वह व्यक्तित्व का संकुचित दायरा होता है। जो कुछ क्रिया होती है, उसकी प्रतिक्रिया अवश्य होती है। हमें दूसरों के द्वारा किए गए क्रियाकलापों का असर स्वयं पर हो, इसकेलिए भी तैयार रहना चाहिए। दूसरों की गलतियों से भी हमारी गरदन टूट सकती है।

No comments:

Post a Comment