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Saturday, September 17, 2011

अविद्या-भय से बचें

           स्वामी रामतीर्थ से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, ‘आपकी दृष्टि में धर्म क्या है और आप किसे धार्मिक मानते हैं?’ स्वामी जी ने कहा, ‘कर्तव्य पालन और करुणा भावना ही धर्म का सार है। जो किसी भी प्राणी के दुख को देखकर द्रवित हो उठे, वही सच्चा धार्मिक है।’

स्वामी रामतीर्थ ने लंदन में आयोजित धर्म सम्मेलन में कहा था, ‘सभी प्राणियों में समभाव रखने को ही धर्म कहते हैं। अपने समान सभी प्राणियों के प्रति अनुकूल व्यवहार करना, सभी के दुख में दुखी व सुख में खुशी अनुभव करना ही वेदांत का लक्षण है। धर्मग्रंथों में न केवल मानव, अपितु पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों में भी समान आत्मा के दर्शन कर किसी को भी कष्ट न पहुंचे, ऐसा करने की प्रेरणा दी गई है। जीवनदायिनी नदियों और प्राण-वायुदायक वृक्षों में भी ईश्वर के दर्शन करना भारतीय संस्कृति की विशेषता है।’
स्वामी रामतीर्थ कहते हैं, ‘श्रद्धा और करुणा भावना को उपनिषदों में बहुत महत्व दिया गया है।

करुण हृदय व्यक्ति सपने में भी किसी के प्रति द्वेष या घृणा की भावना नहीं रख सकता। भारतीय दर्शन में कहा गया है, ‘सभी को अपना समझो। दरिद्र-दुखियों की सेवा ही परमात्मा की सेवा है। संग्रह का भार आत्मदर्शन में बाधक है। छल से कमाया हुआ धन अहंकार और दुर्गुणों को बढ़ावा देकर सद्गुणों से परमात्मा की भक्ति से विमुख करता है।’ इसलिए धन, संपत्ति व भौतिक सुखों से बचने में ही कल्याण है।’ स्वामी रामतीर्थ अविद्या, दुर्बलता और भय को पतन का प्रमुख कारण बताया करते थे।

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