Sunday, October 11, 2015

तुलसी के चमत्कारी गुण!


तुलसी के चमत्कारी गुण!

तुलसी के चमत्कारी गुण!
तुलसी का पौधा अपने स्वास्थय प्रदायक गुणों और सात्विक प्रभाव के कारण आम जनमानस में इतना लोकप्रिय है कि लोग उसे भक्ति भाव से देखते है! अपनी उपयोगिता के कारण इसके प्रति आम मनुष्य में अपार श्रद्धा और विश्वास है! तुलसी केवल शारीरिक व्याधियों को ही दूर नहीं करती अपितु मनुष्य के विचारो पर भी कल्याणकारी प्रभाव डालने में सक्षम है! शास्त्रो में कहा गया है-
“त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश तुलसी यदि!
विशिष्यते कायशुद्धिस्चन्द्रायण शतं बिना!!
तुलसी गंधमादाय यत्र गछन्ति मारुतः!
दिशो दशश्च पूतास्तुभूर्त ग्रामश्चतुविर्धः!!
अर्थात यदि प्रातः, दोपहर और संध्या के समय तुलसी का सेवन किया जाय तो उससे मनुष्य की काया इतनी शुद्ध हो जाती है जितनी अनेक बार चान्द्रायण व्रत करने से भी नहीं होती! तुलसी की गंध वायु के साथ जितनी दूर तक जाती है, वहाँ का वातावरण और निवास करने वाले सब प्राणी पवित्र-निर्विकार हो जाते है!
तुलसी की यह महिमा, गुण-गरिमा केवल कल्पना मात्र नहीं है, भारतीय जनता हजारो वर्षो से इसको प्रत्यक्ष अनुभव करती आई है! हम चाहे जिस भाव से तुलसी के साथ रहेँ, हमको उससे होने वाले शारारिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ न्यूनाधिक परिमाण में प्राप्त होते ही है! पुराणकारों ने तुलसी में समस्त देवताओ का निवास बतलाते हुए यहाँ तक कहा है –
 “तुल्सस्यां सकल देवाः वसंती सततं यतः!
अतस्तामच्येल्लोकाः सर्वांदेवांसमचर्य न!!
अर्थात तुलसी में समस्त देवताओ का निवास सदेव रहता है! इसलिए जो लोग उसकी पूजा करते है, उनको अनायास ही सभी देवों की पूजा का लाभ प्राप्त हो जाता है!
तुलसी की रोगनाशक शक्ति
भारतीय चिकत्सा विधान में सबसे प्राचीन और मान्य ग्रन्थ चरक संहिता में तुलसी को हिचकी, खांसी, विषविकार और पसली के दर्द को मिटाने वाली बताया गया है! इससे पित की वृद्धि और दूषित कफ तथा वायु का शमन होता है, यह दुर्गन्ध विनाशनी भी होती है! तुलसी कटु, तिक्त, हृदय के लिए हितकारी, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली, मूत्रकृच्छ के कष्ट को मिटाने वाली होती है! यह वात और कफ के विकारो को मिटाने में सक्षम है! इसकी तीक्ष्णता केवल विशेष प्रकार की और छोटे कृमियों को दूर करने तक ही सिमित है! यह एक घरेलु वनस्पति है जिसके सेवन से कोई खतरा नहीं रहता है! तुलसी को प्रायः भगवान के प्रसाद, चरणामृत, पंचामृत आदि में मिलाकर सेवन किया जाता है इस प्रकार यह भोजन का अंश बन जाती है! तुलसी के साथ प्रायः सोंठ, अजवायन, कालीमिर्च, बेलगिरी, नीम की कोंपल , पीपल , इलायची , लौंग आदि ऐसी चीजें होती है जो प्रायः हम नित्य प्रयोग में लेते है! यह एक सौम्य वनस्पति है, जिसके दस- पांच पत्ते कभी भी चबा लेने से कोई हानि नहीं है! “रामा” तुलसी के पत्तो का रंग हलका तथा “श्यामा” तुलसी के पत्तो का रंग गहरा होता है! श्यामा तुलसी का प्रयोग इसकी तीव्र गंध और रस के कारण ओषधि में ज्यादा किया जाता है! तुलसी के अन्य प्रकारों में “वन तुलसी”, मरूवक तथा बरबरी तुलसी भी है!
विभिन्न रोगो में तुलसी का प्रयोग-
1. ज्वर– तुलसी के पोधो में मच्छरों को दूर भगाने का गुण और इसकी पत्तियों का सेवन करने से मलेरिया का दूषित तत्व दूर हो जाता है! इसीलिए हमारे यहाँ ज्वर आने पर तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पी लेना सबसे सुलभ और सरल उपचार माना जाता है! कुछ अन्य नुस्खे निम्नानुसार है-
– जुकाम के कारण आने वाले ज्वर में तुलसी के पत्तो का रस अदरक के रस के साथ शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए!
-मलेरिया के निवारण हेतु तुलसी के पत्तो को बारीक पीस लेवे और उसमे आधी मात्रा में काली मिर्च पीसकर मिला लेवे! इस मिश्रण की छोटे बेर के बराबर की गोलिया बना कर छाया में सुखा लेवे! ये दो दो गोलियां तीन तीन घंटे के अंतर से जल द्वारा सेवन करने से मलेरिया अच्छा हो जाता है!
-तुलसी के पत्ते ११, कालीमिर्च ९, अजवायन २ माशा, सोंठ ३ माशा सबको पीसकर एक छटांक पानी में घोल ले! इसके पश्चात मिटटी के कुल्हड़ को आंच पर खूब तपाकर इस कुल्हड़ में मिश्रण को डाल ले! इससे निकलने वाली भाप रोगी के शरीर पर लगावे। कुछ समय पश्चात जब कुल्हड़ में रखा मिश्रण गुनगुना हो जाये तो इसमें थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर रोगी को पिला देवे! इससे सब प्रकार के ज्वर जल्दी दूर हो जाते है !
-पुदीना और तुलसी के पत्तो का रस एक-एक तोला लेकर उसमे ३ माशा खांड मिलाकर सेवन करे, यह मंद ज्वर में लाभदायक है!
– शीत ज्वर में तुलसी के पत्ते, पुदीना, अदरक तीनो आधा आधा तोला लेकर काढ़ा बनाकर पियें!
– तुलसी के पत्ते और काले सहजन के पत्ते मिलाकर पीस लेवे! उस चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से विषम ज्वर दूर होता है!
-मंद ज्वर में तुलसी पत्र आधा तोला, काली दाख दस दाना, कालीमिर्च एक माशा, पुदीना एक माशा सबको ठंडाई की तरह पीस-छान मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है!
-विषम ज्वर और पुराने ज्वर में तुलसी के पत्तो का रस एक तोला मात्र में कुछ दिनों तक इस्तेमाल से लाभ होता है!
-तुलसी पत्र एक तोला, काली मिर्च एक तोला, करेले के पत्ते एक तोला, कुटकी ४ तोला सबको खरल में खूब घोट कर मटर के बराबर गोलिया बनाकर छाया में सुख ले! ज्वर आने से पहले और सांयकाल के समय दो-दो गोली ठन्डे पानी से सेवन करने पर जाड़ा देकर आने वाला बुखार दूर होता है! स्वस्थ मनुष्य द्वारा सेवन करने पर ज्वर का भय नहीं रहता!
-तुलसी पत्र और सूरजमुखी की पत्तिया पीस-छानकर पीने से सब तरह के ज्वर में लाभ होता है!
-कफ के ज्वर में तुलसी पत्र, नागरमोथा और सोंठ बराबर लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए!

-सामान्य हरारत तथा जुकाम में तुलसी की थोड़ी -सी पत्तियों का चाय की तरह काढ़ा बनाकर उसमे दूध और मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है! यह तुलसी की चाय अत्यंत हितकारी है!
2. खांसी और जुकाम – चरक सहिंता के अनुसार खांसी में छोटी मक्खी के शहद के साथ तुलसी का रस विशेष रूप से लाभदायक है!
-साधारण खांसी में तुलसी के पत्तो और अडूसा के पत्तो का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है!
-तुलसी के बीज, गिलोय, सोंठ, कटेरी की जड़ सामान भाग पीस कर छान ले, इसमें से आधा माशा चूर्ण शहद के साथ खाने से खांसी में लाभ होता है!
-कूकर खांसी में तुलसी मंजरी और अदरक को बराबर लेकर पीसने के पश्चात शहद में मिलाकर चाटे!
-तुलसी की मंजरी, बच, पीपल आधा-आधा तोला और मिश्री दो तोला लेकर एक सेर पानी में ओटायें, जब आधा रह जाए तो छानकर पी लेवे!इसको एक एक छटांक दिन में कई बार सेवन करने से कूकर खांसी में लाभ होता है!
-छोटे बच्चो की खांसी में तुलसी की पत्ती ४ रत्ती और काकड़सिंघी तथा अतीस दो-दो रत्ती शहद में मिलाकर माँ के दूध के साथ देने से फायदा होता है!
-तुलसी का रस और मुलहठी का सत मिलाकर चाटने से खांसी दूर होती है !
-तुलसी और कसुंदी की पत्ती का रस मिलकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है!
-चार पांच लोंग भूनकर तुलसी पत्र के साथ लेने से सब तरह की खांसी में लाभ होता है!
-सुखी खासी में अगर गला बैठ गया हो तो तुलसी पत्र, खसखस (पोस्त का दाना) तथा मुलहटी पीसकर समान भाग लाल बुरा या खांड मिलाकर गुनगुने पानी के साथ सेवन करे!
_तुलसी पत्र आधा तोला, गेहू का चोकर एक तोला, मुलहठी आधा तोला पाव भर पानी में पकाये! आधा रह जाने पर छानकर थोड़ा देशी बुरा या खांड मिलाकर पीने से शीघ्र खांसी दूर होती है!
-तुलसी पत्र, हल्दी और काली मिर्च का उपरोक्त विधि से सेवन करने से जुकाम और हरारत में लाभ होता है!
३. आँख, नाक और कानों के रोग– ये तीनो इन्द्रियां महत्वपूर्ण और कोमल होती है अतएव किसी व्याधि में तीव्र ओषधि का व्यवहार उचित नहीं! तुलसी ऐसी सोम्य और निरापद ओषधि है जो अपने सूक्ष्म प्रभाव से इन अंगो को शीघ्र निरोग कर सकती है!
– तुलसी के बीज २ माशा, रसोत २ माशा , आमाहल्दी २ माशा , अफीम ४ रत्ती इन सबको घीग्वार के गूदे में मिलाकर पीस लेवे! इसका आँखों के चारो तरफ लेव करने से दर्द और सुर्खी में लाभ होता है!
-केवल तुलसी का रस निकालकर आँखों में आँजने से नेत्रों की पीड़ा तथा अन्य रोग दूर होते है!
-आँखों में सूजन और खुजली की शिकायत होने पर तुलसी पत्रो का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी-सी फिटकरी पीसकर मिला देवे! जब काढ़ा गुनगुना रहे तभी साफ़ रुई को उसमे भिगोकर बार-बार पलकों को सेंके! पांच-पांच मिनट में दो बार सेकने से सूजन कम होकर आँखे खुल जाती है!
-अगर कान में दर्द हो या श्रवण शक्ति में कुछ कमी जान पड़ती हो तो तुलसी का रस जरा सा गुनगुना करके दो-चार बुँदे टपकाने से आराम होता है ! कान बहता हो या पीव पड़ जाने से दुर्गन्ध आती हो तो प्रतिदिन रस डालते रहने से लाभ होता है!
-अगर नाक के भीतर दर्द होता हो, किसी तरह का जख्म अथवा फुंसी हो गयी हो तो तुलसी के पत्तो को खूब बारीक पीसकर सुँघनी की तरह सुंघने से आराम होता है!
4. पुरषो के मूत्र सम्बन्धी रोग– तुलसी के बीज अधिक लसदार और लपक होते है!ये बीज बहुत जल्द लुआव छोड़ते है और थोड़ी ही देर में लसदार झिल्ली के रूप में बदल जाते है , इसलिए इनको गुड जैसी किसी चीज में मिलाकर खाते है या पानी में घोलकर पीते है! तुलसी के पत्ते भी वीर्य दोषो को मिटाने में बहुत उपयोगी है!
-तुलसी की जड़ को बारीक पीसकर सुपारी की जगह पान में रखकर खाया जाय तो पौरुष शक्ति का विकास होता है!
-तुलसी के बीज या जड़ का चूर्ण पुराने गुड में मिलाकर ३ माशा प्रतिदिवस दूध के साथ सेवन करने से पुरषत्व की वृद्धि होती है!
-तुलसी के बीज ५ तोला, मूसली ४ तोला, मिश्री ६ तोला लेकर पीस लेवे! इस चूर्ण को प्रतिदिवस ३ माशा मात्रा गाय के दूध के साथ सेवन करने से निर्बलता में आशाजनक सुधार आता है!
-उपदंश रोग में तुलसी के बीज पानी में महीन पीसकर लुगदी बना लेवे! इससे दूना नीम का तेल लेकर दोनों को आग पर पकाए! जब लुगदी जलकर काली पड़ जाए तब उसे छानकर तेल को ठंडा कर लेवे और उपदंश के घावों पर लगावे, यह तेल अन्य प्रकार के घावों पर भी लाभदायक है!
-मूत्रदाह की शिकायत पर पाव भर दूध और डेढ़ पाव पानी मिलाये और उसमे दो-तीन तुलसी पत्र का रस डालकर पी लेवे!
-रात को तुलसी के ६ माशा बीज पाव भर पानी में भिगो देवे और सुबह उनको खूब मिलाकर ठंडाई की तरह पी जाए! इसके लगातार सेवन से प्रमेह, धातु क्षीणता , मूत्र-कृच्छ आदि में लाभ होगा!
5. स्त्रियों के विशेष रोग-
तुलसी स्त्री वाचक पौधा है और कथाओ में उसे विष्णु की प्रिया भी कहा गया है, यह स्त्रियों के स्वास्थय संवर्धन में विशेष सहायक है!
-स्त्रियों के मासिक धर्म रुकने पर तुलसी के बीजो का प्रयोग लाभदायक होता है , तुलसी पंचांग (पत्ते, मंजरी, बीज, लकड़ी और जड़), सोंठ, निम्बू की छाल का गुदा, अजवायन , तालिश पत्र इन सबको जौकुट कर इस मिश्रण में से एक तोला लेकर पाव भर पानी में काढ़ा बनावे! जब चौथाई पानी रह जावे तो छानकर पी लेवे! कुछ समय तक यह प्रयोग करने से रुक हुआ मासिक धर्म खुल जाता है!
– यदि रजो-दर्शन (मासिक-धर्म) के होने पर तुलसी के पत्तो का काढ़ा बनाकर तीन दिन तक पी लिया जाय तो गर्भ स्थापना की सम्भावना कर हो जाती है!
-गर्भणी स्त्री की छाती और पेट की खुजली के लिए वन तुलसी के बीजो का लेप अत्यंत लाभकारी है!
-तुलसी के रस में जीरा पीसकर उसे गाय के धारोष्ण दूध के साथ सेवन किया जाय तो प्रदर रोग में सुधार होकर स्त्री का स्वस्थ्य सुधरता है!
-प्रसव के समय तीव्र वेदना होने पर तुलसी का रस एक पिलाने से आराम होता है!
6. बच्चों के रोग– छोटे बच्चो के विभिन्न रोगो के उपचार हेतु तुलसी को एक सौम्य तथा निरापद ओषधि के रूप में व्यवहार में लाया जाता है!
– बच्चो को शीतला माता के निकलने पर तुलसी की मंजरी , अजवायन और अदरक समभाग में लेकर दिन में कई बार सेवन करने से लाभ होता है!
-तुलसी पत्र एक तोला, मैथी एक तोला, कूट ६ माशा आधा पाव पानी मैं पकाये!जब चौथाई भाग शेष रह जाए तो छानकर ठंडा करके पिलाये, यह शीतला ज्वर में लाभदायक है !
– बच्चो को सर्दी और खांसी की शिकायत होने पर तुलसी पत्र का रस, अजवायन और अदरक का रस पौन-पौन तोला लेकर खरल कर लेवे और ढाई तोला शहद मिलाकर शीशी में भर लेवे! इसमें से ३० से ६० बून्द तक दिन में तीन बार देने से लाभ होता है!
-तुलसी पत्र, बबूल की कोपल, अजवायन एक एक तोला मिलाकर रख लेवे! इसमें से ६ माशा लेकर १ छटांक जल में पकाये! जब चौथाई रह जाये तो छानकर बच्चो को पिलाये, इससे सभी प्रकार के ज्वर मैं लाभ होता है!
-दांत निकलते समय बच्चो को जोर के दस्त लगते है, उसमे तुलसी के पत्तो का चूर्ण अनार के शर्बत में देना लाभदायक होता है!
7. उदर रोगो में-
– तुलसी के ताजे पत्तो का रस एक तोला प्रतिदिन सुबह सेवन करने से अजीर्ण दूर होता है!
– तुलसी के पंचांग का काढ़ा बनाकर पीने से दस्तो में आराम होता है और पाचन शक्ति बढ़ती है!
– उपर्युक्त काढ़े में एक या दो रत्ती जायफल का चूर्ण मिलकर पीने से दस्तो की कठिन बीमारी में शीघ्र आराम होने लगता है!
-तुलसी व अदरक का रस एक-एक चम्मच मिलाकर दिन में तीन बार पीने से पेट दर्द में लाभ होता है!
– तुलसी के ग्यारह पत्ते लेकर एक माशा बायडबिँग के साथ पीस लेवे, इसको सुबह शाम ताजा पानी के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते है !
– सूखे तुलसी पत्र, सोंठ और गुड मिलाकर बड़ी गोलियां बना लेवे, इनको प्रति दिन इस्तेमाल करने से दस्तो में लाभ होता है!
-तुलसी और सहजन के पत्तो का छटांक भर रस में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से मंदाग्नि मिटकर दस्त साफ़ होता है!
-तुलसी के सूखे पत्रो का चूर्ण एक माशा , इसबगोल तीन माशा मिलाकर दही के साथ सेवन करने से पतले दस्तो में लाभ होता है!
 8. फोड़ा, घाव और चर्म रोग- तुलसी शोधक और कीटाणु नाशक गुणों से युक्त है, इसकी गंध से कई प्रकार के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते है! हर प्रकार के घाव और फोड़ो पर तुलसी का इस्तेमाल लाभदायक सिद्ध होता है! तुलसी की लकड़ी को चन्दन की लकड़ी के समान घिसकर फोड़ो पर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है! तुलसी पत्र के काढ़े से धोने पर भी फोड़ो और घावों में लाभ होता है! अगर घाव में कीड़े पड़ गए हो तथा उसमे से बदबू आ रही हो तो तुलसी के सूखे पत्तो को पीसकर छिड़क देना चाहिए!
– तुलसी के पत्तो को निम्बू के रस में पीसकर दाद पर लगाने से आराम मिलता है!
– तुलसी का रस दो भाग और तिल्ली का तेल एक भाग मिलाकर मंद आग पर पकाये! ठीक पक जाने पर छान लेवे, इसके प्रयोग से खुजली और चर्म रोगो में लाभ होता है!
– अग्नि से जल जाने पर तुलसी का रस और नारियल का तेल फेंट कर लगाने से जलन मिट जाती है! यदि फफोला पड़ गया हो या घाव हो तो वो शीघ्र ठीक हो जाता है!
-तुलसी के पत्तो को गंगा जल में पीस कर निरंतर लगाते रहने से सफ़ेद दाद कुछ समय में ठीक हो जाते है!
-बालतोड़ पर तुलसी पत्र और पीपल की कोमल पत्तिया पीसकर लगाने से लाभ मिलता है !
– नाक के भीतर फुंसी हो जाने पर तुलसी पत्र तथा बेर को पीसकर सूंघने और लगाने से लाभ होता है!
-पेट के भीतर फोड़ा या गुल्म में तुलसी पत्र और सोया के शाक का काढ़ा बनाकर उसमे थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए!
-तुलसी पत्र और फिटकरी को खूब बारीक पीसकर घाव पर छिड़कने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है!
-बालो का झड़ना पर असमय सफ़ेद हो जाना भी एक चर्म विकार है , इसके लिए तुलसी पत्र और सूखे आवले का चूर्ण सर में अच्छी तरह मिलाकर सामान्य तापमान के पानी में धोना चाहिए!
-तुलसी के २०-२५ तोला पत्तो को पीसकर पानी में मिलाकर उसका रस निकाल लेवे फिर आधा सेर रस तथा तिल्ली का तेल मिलाकर आग पर पकाये! पानी जल जाने पर तेल को छानकर बोतल में भर दिया जाये , इस तेल की मालिश से खुजली, खुश्की आदि दूर हो जाती है!
9. मस्तिष्क और स्नायु रोग – मस्तिष्क और ज्ञान तंतुओ की प्रक्रिया बहुत गूढ़ और सूक्ष्म है, तुलसी भी एक सूक्ष्म प्रभाव युक्त दिव्य बूटी है! “तुलसी कवच” में वर्णित तुलसी की महिमा अतयंत अपार है, यह हमारे मस्तिष्क हेतु भी अत्यंत कल्याणकारी है!
– स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते और चार-पांच काली मिर्च बारीक घोट -छानकर सुबह लेने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है! यदि चाहे तो इस मिश्रण में दो-चार बादाम और इसमें थोड़ा शहद मिलाकर इसे ठंडाई के सामान इस्तेमाल किया जा सकता है!
-प्रातः काल स्नान करने के पश्चात तुलसी के पांच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मस्तिष्क की निर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति और मेघा की वृद्धि होती है!
-तुलसी के पत्ते और ब्राम्ही पीसकर छानकर एक गिलास नित्य सेवन करने से मस्तिष्क की निर्बलता से उत्पन्न उन्माद ठीक होता है!
-तुलसी के रस में थोड़ा नमक मिलाकर नाक में दो-चार बून्द टपकाने से मूर्छा और बेहोशी में लाभ होता है!
– तुलसी का श्रद्धा पूर्वक नियमित सेवन सभी ज्ञानेन्द्रियों की क्रिया शुद्ध कर उनकी शक्ति को बढ़ाता है!
10. दांतो की पीड़ा-
– दांतो में दर्द होने पर तुलसी के पत्ते और कालीमिर्च पीस कर गोली बनाकर दर्द के स्थान पर रखने से लाभ होता है!
-तुलसी के पंचांग में कूटकर तोला भर मात्र को आधा सेर पानी में पकाये, आधा पानी जल जाने पर उतार लेवे, इससे कुल्ला करने पर दांतो का दर्द मिटाता है!
11. सर दर्द-
-सर पीड़ा में तुलसी के सूखे पत्तो का चूर्ण अथवा तुलसी के बीजो का चूर्ण कपडे से छानकर सुंघनी की तरह सूंघने से आराम होता है!
-तुलसी पत्र ३५, सफ़ेद मिर्ची १, तुरिअ १० नग इनको जल में पीस कर रस निकालकर नित्य लेने से पुराना सर दर्द दूर हो जाता है!
– तुलसी पत्र और दो-तीन काली मिर्च पीसकर रस निकालकर नस्य लेने से आधा शीशी का दर्द दूर हो जाता है!
– वन तुलसी का फूल और कालीमिर्च को जलते कोयले पर डालकर उसका धुँआ सूंघने से सर का कठिन दर्द ठीक हो जाता है!
-श्यामा तुलसी की जड़ को चन्दन की तरह घिसकर लेप करने से सर दर्द मिटता है!
12. गठिया और जोड़ो का दर्द –
– तुलसी में वात विकार को मिटाने का गुण है! तुलसी के पत्तो का रस नियमित सेवन करने से जोड़ो के दर्द में लाभ रहता है! मोच और चोट पर तुलसी रस की मालिश लाभदायक है!
– तुलसी की जड़, डंठल, मंजरी, पत्ते और बीज इन पांचो को सामान मात्र में लेकर कूट छानकर ६ माशा की मात्रा में उतने ही पुराने गुड के साथ मिला लेवे! इसको प्रातः -सांय दोनों समय बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गठिया का रोग दूर होता है!
-वन तुलसी के पंचांग को पानी मैं उबालकर उसका भपारा लेने से लकवा और गठिया में लाभ होता है!
१३ तुलसी के विविध प्रयोग-
-दिन में दो बार , विशेषकर भोजन के घंटे आधे घंटे बाद तुलसी के चार-पांच पत्ते चबा लेने से मुह में दुर्गन्ध आना बंद हो जाती है!
-चारपाई में वनतुलसी रखने से खटमल भाग जाते है, तुलसी की डाल को घर में रखने पर घर में सांप, छछूंदर, मच्छर नहीं आते!
-छाती, पेट तथा पिंडलियों मैं जलन होने पर तुलसी की पत्ते और देवदारु की लकड़ी घिसकर लगाने पर आराम मिलता है!
-गले के दर्द में तुलसी के पत्तो का रस शहद मैं मिलाकर चाटना चाहिए!
-पेचिश, मरोड़ और आवँ आने की शिकायत होने पर तुलसी पत्र सुखा दो माशा, काला नमक एक माशा आधा पाव दही में मिलाकर सेवन करे!
-बवासीर के लिए तुलसी की जड़ तथा नीम की निम्बोलियो की मिंगी सामान भाग में लेकर चूर्ण बना लेवे तथा इसमें से ६ माशा प्रतिदिन छाछ के साथ सेवन करने से लाभ होता है!
–पेट में तिल्ली बढ़ जाने पर तुलसी की जड़, नौसादर, भुना सुहागा और जवाखार बराबर मात्र में लेकर चूर्ण बना लेवे , इसमें से २-३ माशा सुबह ताजा पानी के साथ लेने से आराम होता है!
– देह में पित्ती उठ जाने पर तुलसी के बीज २ माशा आवले के मुरब्बे के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए!
-नेहरू की बीमारी में सूजन के स्थान पर तुलसी की जड़ को घिसकर लेप करना चाहिए! इससे कीड़े का २-३ इंच लम्बा भाग बाहर निकल जायेगा, उसको बांधकर अगले दिन फिर इसी प्रकार लेप करे! इस तरह २-३ दिनों में पूरा कीड़ा बाहर निकल आता है!
-वन तुलसी के पत्ते हैजे में आशार्यजनक प्रभाव दिखलाते है! पत्तो के साथ बीज की गिरी , नीम की छाल, अपामार्ग(आँगा) के बीज, गिलोय , इन्द्रजौ इन सबको मिलाकर दो-तीन तोला करीब तीन पाँव पानी में पकाये , जब पानी आधा रह जाय तो तो तीन तोला की मात्रा में मरीज को लगातार थोड़ी थोड़ी देर में देवे! इस प्रयोग से मरीज की प्राण रक्षा की जा सकती है!
14. तुलसी के विशिष्ट प्रयोग-
-वन्ध्या स्त्रियों की सन्तानोपत्ति हेतु भी तुलसी की विशिष्ट प्रयोग योग्य आयुर्वेदाचार्य द्वारा संभव है!
-मध्यप्रदेश की जनजाति एवं आदिवासियों द्वारा सर्पदंश में तुलसी से प्राण रक्षा की जाती है! ये तुलसी के पत्तो को पीसकर तथा मक्खन मिलाकर सांप के कटे स्थान पर लेप करते है! लेप जब तक काला पड़ता रहता है वे लेप बदलते रहते है! साथ ही पीड़ित को एक मुठी भर कर तुलसी के पत्ते खिला देते है!
उपरोक्त लेख का निर्माण श्री श्रीराम शर्मा आचार्य की पुस्तक “तुलसी के चमत्कारी गुण” से किया गया है! आचार्य जी और अन्य मनीषियों की आप सभी से आशा है की वर्तमान प्रचार के इस युग में हम सभी को तुलसी के माहात्म्य की चर्चा एवं प्रचार प्रसार करना चाहिए! इस प्रकार हम हमारी विराट संस्कृति की सेवा कर सकते है!
सादर!
सुरेन्द्र सिंह चौहान!

No comments:

Post a Comment