Saturday, November 26, 2011

अद्भुत उपाय


TUESDAY, 23 AUGUST 2011


 

अद्भुत उपाय 
1. व्यवसायिक समस्या निवारण के लिए:-
यदि आपके कारोबार में अनावश्यक अवरोध हो, कारोबार चल नहीं रहा हो, कभी घी घणा तो कभी मुट्ठी चना की दशा बनी रहती हो तो ऐसी अवस्था में शनि अमावस्या के इस पावन अवसर पर इस उपाय को शुरू करके देखें, और लगातार 43 दिन तक करें। अवश्य ही लाभ होगा।
एक काला कपडा लें। उडद के आटे में गुड मिले सात लड्डू, 11 बताशे, 11 नींबू, 11 साबुत सूखी लाल मिर्च, 11 साबुत नमक की डली, 11 लौंग, 11 काली मिर्च, 11 लोहे की कील और 11 चुटकी सिंदूर इन सबको कपडे में बांधकर पोटली बना दें। पोटली के ऊपर काजल की 11 बिंदी लगा दें। तत्पश्चात अपने सामने रख दें। ओम् आरती भंजनाय नम: मंत्र की 108 बार जाप करें इसके साथ ही पांच माला ओम् प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:। तत्पश्चात यह सामग्री लेकर मुख्य दरवाजे के चौखट के बीचोबीच खडे हो जाएं। इस पोटली को अपने ऊपर से 11 बार उसार करके किसी मंदिर या चौराहे पर रखकर आ जाएं।
2. पारिवारिक सुख-शांति के लिए:- सात मुखी पांच दानें, काली मिर्च पांच दानें, लौंग पांच दानें, बादाम पांच दानें, पांच नींबू, पांच सूखी मिर्च, पांच साबुत नमक की डली, पांच चुटकी सिंदूर, पांच कौडियां, पांच गोमती चक्त्र, पांच तांबे के छेद वाले सिक्के, इन सबको एक नीले कपडे में बांधकर पोटली बना दें। पूजा स्थान में इस पोटली को अपने सामने रख दें और इस मंत्र ओम् शं शनैश्चराय नम:। ध्वजनी धामिनी चैव कंकाली कलहि प्रिया कंटकि चाऽथ तुरंगी महिषी अजा ओम् शं शनैश्चराय नम:। का 108 बार जाप करके साथ ही इस नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते। नमस्ते बभु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते॥ शनि स्तुति का पांच माला करें। इस पोटली को घर के मुख्य द्वार के अंदर दाई ओर के कोने में लटका दें। परिवार में सुख-शांति आएगी और यदि व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार के बाई ओर अंदर के कोने में लटका दें तो संपूर्ण व्यापारिक समस्याओं का निवारण हो जाएगा। हर अमावस्या के दिन इस उपाय को दोहरा दें और पहले वाली सामग्री बहते पानी में प्रवाह कर दें।
3. शारीरिक सुख-शांति के लिए:- यदि आपके घर से बीमारी नहीं जा रही हो या घर के किसी भी सदस्य पर दवा असर नहीं कर रही हो, बीमारी पीछा नहीं छोड रही हो और हमेशा मन में भय और शंका बनी रहती हो तो तो शनि अमावस्या के दिन यह उपाय शुरू करके देखें और लगातार 43 दिन तक करें। एक साफ व पवित्र थाली लें। उसके अंदर काला कपडा बिछा दें। उसके अंदर उडद के आटे के ग्यारह लड्डू बनाकर रखें। प्रत्येक लड्डू के ऊपर एक साबुत सुपारी, एक काली मिर्च, एक लौंग, एक साबुत नमक की डली, ग्यारह दाने चावल के, ग्यारह चम्मच दही और सात दाने केसर के टुकडे के रखें। प्रत्येक लड्डू के सामने एक तेल का दीपक जलाएं और कपूर की डली रखें। ओम् शं शनैश्चराय का जाप करते हुए कपूर को प्रावलित कर अपने ऊपर से सात बार उसार कर इस समस्त सामग्री को किसी चौराहे पर चुपचाप रखकर आ जाएं। दवा लगने लगेगी और सारी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा।
4. कोर्ट कचेहरी व कानूनी विवादों को निपटाने का अचूक प्रयोग:- ओम् योजन गंधा जोगिनी, ऋद्धि सिद्धि में भरपूर। मैं आयो तोय जाचणे, करजो कारज जरूर॥ शनि अमावस्या के दिन सूर्योदय से पहले या शाम पांच बजे के बाद इस उपाय को करे। गेहूं का आटा सवा सेर, घी ढाई पाव, चीनी ढाई पाव, इनका कंसार भूनकर तैयार कर लेवें। शनिवार को सूर्योदय से पहले जंगल में जाकर कीडी नगरा (चींटा-चींटी के बिलों) में थोडा-थोडा कंसार गिराते जाएं और ऊपर लिखे मंत्र का उच्चारण करते जाएं। मन्त्र - ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै।
पंच महाकल्याणकारी योग के दिन अद्भुत पांच मंत्र
क्या आप अपने निजकृत कर्मो की वजह से शनि की ढैय्या से परेशान है। 1. श्री शनिदेव का ढैय्या अनुकूलन का अदभुत मंत्र ओम् प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
क्या आप अपने निजकृत कर्मो की वजह से शनि की ढैय्या से परेशान है? 2. श्री शनिदेव की साढेसाती में कृपा प्राप्ति का मूल मंत्र ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:।
क्या आप अपने निजकृत कमरें की वजह से शनि की साढेसाती से परेशान है? 3. श्री शनिदेव की दशा में अनुकूल फल प्राप्ति कराने वाला मंत्र ओम् प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:।
क्या आप अपने निजकृत कर्मो की वजह से पारिवारिक सुख से वंचित हैं? 4. पारिवारिक सुख-शांति देने वाला श्री शनिदेव का अदभुद वैदिक मंत्र नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् छायामार्तण्ड संभूतम् तम नमामि शनैश्चरम्॥
क्या आप अपने निजकृत कर्मो की वजह से मंगलमय जीवन नहीं जी रहे हैं? 5. सदाबहार सर्वसुखकारी श्रीशनिदेव का मंत्र ओम् शं शनैश्चराय नम:। पूजन विधि
श्री शनिदेव का शनि अमावस्या पर पूजन विधि सर्वप्रथम अपने पूजा स्थान में चौकी लगाकर काला वस्त्र बिछाएं उसके ऊपर श्रीशनिदेव का श्रीविग्रह अथवा पीडा निवारण शनि यंत्र को विराजमान करें। उसके बाद श्रद्धाभाव से श्री शनि देव का आह्वान, स्थापना, ध्यान और पूजन किया जाए तो जीवन के सभी दु:खों से छुटकारा मिल जाता हैं और घर में आरोग्य प्राप्त होता है।
श्री शनिदेव का आह्वान श्रीशनि देव आह्वान करने के लिए हाथ में नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत व जल लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करें- ह्रीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायार्मात्ताण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्।। ह्रीं बीजमय, नीलांजन सदृश आभा वाले, रविपुत्र, यम के अग्रज, छाया मार्तण्ड स्वरूप उन शनि को मैं प्रणाम करता हूं और मैं आपका आह्वान करता हूँ॥
शनि स्थापना अपने पूजा स्थान में नवग्रह मंडल बनाकर पश्चिम में श्रीशनिदेव की स्थापना करें। और स्थापना करते समय हाथ में मोली लपेटी हुई साबुत सुपारी लेकर शनि देव को स्थापना करते समय इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सुपारी को नवग्रह मंडल में शनि के ऊपर छोड दें।
श्रीशनि देव का ध्यान हाथ में पुष्प लेकर श्रीशनि देव का ध्यान करें। और ध्यान करते हुए इस मंत्र का 108 बार जाप करके पुष्प श्रीशनिदेव के चरणों में समपिर्तत कर दें। ओम् सूर्य पुत्रौ दीर्घदेही विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दाचार प्रसन्नत्मा पीडां हरतु ते शनि:॥
श्री शनिदेव की पंचोपचार पूजन विधि
1. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। आसनं समर्पयामि। श्रीशनिदेव के श्री चरणों में काला वस्त्र अर्पित करें। 2. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। पाध्दं समर्पयामि। श्री चरणों को जल से धोएं। 3. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। अ‌र्ध्य समर्पयामि। श्री शनिदेव के चरणों का ध्यान करते हुए हाथ धोएं और हाथ धोने के लिए तीन चम्मच जल अ‌र्ध्य के लिए अर्पित करें। 4. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। आचमनीय समर्पयामि और पुन: आचमन के लिए श्रीचरणों में जल चढाए। 5. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। स्नानं समर्पयामि। तत्पश्चात स्नान के लिए जल अर्पित करें। 6. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। गन्धं समर्पयामि। श्री शनिदेव के श्री चरणों में इत्र अर्पित करें। 7. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। धूप-दीपं समर्पयामि। धूप और दीप प्रावलित करके समर्पित करें। 8. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। नैवेध्दं समर्पयामि। श्री शनिदेव के श्री चरणों में प्रसाद अर्पित करें। 9. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। आचमनीयं समर्पयामि। एक पुन: आचमनीय के लिए श्री चरणों में जल छोडे। 10. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। वस्त्रं समर्पयामि। यंत्र को अच्छी तरह पोंछकर के या श्रीशनिदेव के श्रीविग्रह पर काले वस्त्र समर्पित करें। 11. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। दक्षिणा समर्पयामि। श्रद्धानुसार दक्षिणा समर्पित करें और बाद में यह दक्षिणा किसी गरीब आदमी को दान में दे दें। 12. ओम् नमो भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नम:। नमस्करोमि समर्पयामि। श्री चरणों में कल्याण व कष्ट निवारण के लिए हाथ जोडकर प्रार्थना करें। अब आप घी और तेल का दीपक जलाएं ओम् शं शनैश्चराय नम: मंत्र की 11 माला जाप करें। जाप के उपरांत जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं, गरीब कन्याओं को वस्त्र व दान दें।
ओम् भूभुर्व: स्व: काश्यम गौत्र शनैश्चर इहागच्छ इहातिष्ट। ओम् शनैश्चराय नम:॥

क्या कहती है सितारों की चाल
शनि अमावस्या, शनि जयंती, भावुका अमावस्या, सर्वाथ सिद्धि योग, वट सावित्री व्रत इस पावन पर क्या कहती है सितारों की चाल जहां एक ओर शनि और बृहस्पति राष्ट्र में एक नई प्रगति की नींव रखेंगे। आर्थिक स्त्रोतों में वृद्धि होगी। सरकार में सजगता बढेगी। मार्किट की स्थिति कुछ लाभ देने लगेगी। वहीं दूसरी ओर सूर्य के आगे मंगल सूर्य की राशि में गोचर कर रहे हैं। और यह योग आंधी, तूफान, अग्निकांड का प्रबल संकेत दे रहा है। वहीं राहू और सूर्य का षडाष्टक योग नक्सलवाद, आतंकवाद और सीमाओं को लेकर सरकार को सावधानी का संकेत दे रहा है। इस ग्रह योगायोग में राजनीतिक उठापटक की प्रबल संभावना बनती है। साथ ही राजनीतिक समीकरण का धुआं भी उठने लगता है। यह समय मैदिनी ज्योतिष के अनुसार राष्ट्र को सावधानी का संकेत दे रहा है।
द्वादश राशियों में शनि का प्रभाव मेष राशि - मेष राशि वालों के लिए शनि छठे भाव में गोचर कर रहा है। छठा भाव उपचय और वृद्धिकारक भाव है। यहा शनि अच्छा फल देता है। कारोबार में लाभ मिलेगा। कार्य संबंधी समस्याओं का निवारण होगा। कारोबार की स्थिति सुदृढ होगी। व्यवसाय में लेन-देन के मसले निपटेंगे। कानूनी झंझटों से छुटकारा मिलेगा। नौकरी में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे। संपूर्ण रोजगार, परिवार और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निवारण होगा।
उपाय शनिवार को अपने हाथ की नाप का 19 हाथ लंबा काला धागा माला बनाकर पहनें, बहुत लाभ होगा। प्रतिदिन स्नानोपरांत शिवलिंग पर ओम् शं वज्र देहाय नम: मंत्र का जाप करते हुए जल व बेलपत्र चढाएं व जल में व दूध व गंगाजल जरूर मिलाएं। वृषभ राशि वृषभ राशि वालों के लिए शनि नवम व दशम भाव का स्वामी होकर राजयोगकारक होता है। इसलिए वृषभ राशि वालों के लिए शनि उत्तम फल प्रदान करेगा। व्यवसाय में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे। व्यवसाय में किए गए प्रयास सफल होंगे और प्रयास के अनुकूल धन प्राप्ति का योग भी बनेगा। समाज में समाजिक सुयश और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। रोजगार संबंधी समस्याओं का निवारण होगा। अध्यात्म की ओर रूचि बढेगी। पारिवारिक समस्याओं का निवारण होगा। दांपत्य जीवन में अनुकूलता व संतान पक्ष की ओर से भी लाभ मिलेगा।
उपाय शनि मृत्युंजय स्तोत्र का नियमित पाठ करें या कराएं और यथाशक्ति जौ का दान गौशाला में दें। सूखा नारियल और बादाम श्रद्धानुसार किसी मंदिर में हर शनिवार दान करें।
मिथुन राशि मिथुन राशि वालों को शनि की ढैय्या के नाम से बहुत डराया जा रहा है परंतु इस समय शनि चतुर्थ भाव में है और चतुर्थ भाव मोक्ष का भाव है। इसलिए मिथुन राशि वालों के लिए भी शनि अनुकूल फल देगा। अनावश्यक मानसिक पीडाओं से छुटकारा मिलेगा। भ्रम, भय और भ्रांति से राहत मिलेगी। सामाजिक कार्यो को करने का सुअवसर प्राप्त होगा। कहीं से रुका हुआ धन प्राप्त होगा। बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त होगा। परंतु थोडा-सा पारिवारिक विवाद न हो इसपर ध्यान दें। और यदि आप नौकरी में हैं तो बॉस से तर्क-वितर्क न करें।
उपाय किसी भी शनिवार को प्रारंभ करके 21 दिन तक ओम् शं सर्वारिष्ट विनाशने नम: मंत्र की 11 माला व 1 पाठ दुर्गा चालीसा का करने से शनि संबंधी कष्टों से मुक्ति मिलती है। किसी भी शनिवार को शमी वृक्ष (छोकर, खेजडी) की जड को काले धागे में बांध कर दाहिने भुजा या गले में धारण करें।
कर्क राशि कर्क राशि वालों के लिए शनि तीसरे भाव से गोचर कर रहा है और तीसरे भाव में शनि अनुकूल फल प्रदान करता है क्योंकि यह उपचय भाव है जबकि इस समय शनि सप्तम और अष्टम का स्वामी होता है। मनोवांछित सफलताएं प्राप्त होगी। जो सोचा है वो पूरा होगा। कारोबार में अनुकूल साझेदारों की प्राप्ति होगी। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। धन कोष में वृद्धि होगी। पारिवारिक वातावरण मनोनुकूल सामंजस्य बना रहेगा। इस समय देश-विदेश में लाभदायिक यात्राओं का भी योग नजर आ रहा है। कामकाज संबंधी समस्याओं का निवारण होगा। कार्यो में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे।
उपाय शनैश्चर स्तोत्र का नियमित पांच पाठ सुबह-श्शाम करें। लोहे के बरतन में आठ किलो सरसों का तेल भरकर उसमें अपना चेहरा देखकर उस तेल को शनि मंदिर में ले जाएं ओर स्नानोपरांत गीले कपडों में ही शनि प्रतिमा का विधिावत तेलाभिषेक करें।
सिंह राशि सिंह राशि वालों के लिए शनि दूसरे भाव में गोचर कर रहा है। सिंह राशि वाले को शनि की साढेसाती का अंतिम चरण चल रहा है। यदि व्यक्ति नेक नियती रखता है तो इस भाव में शनि अदभुत लाभकारी फल प्रदान करता है। सामाजिक और मानसिक परेशानियों का निवारण होगा। आर्थिक पक्ष सुदृढ होगा और आर्थिक स्त्रोतों में वृद्धि भी होगी। व्यवसाय संबंधी नवीन योजनाएं फलीभूत साबित होगी। राजनीति के क्षेत्र में वर्चस्व बढेगा। नौकरी में तरक्की के अवसर प्राप्त होंगे। यदि आप राजनीति में हैं तो पद और प्रतिष्ठा में अवश्य वृद्धि होगी। परंतु यदि आपकी नेक नियती नहीं है तो अकस्मात घाटा भी लग सकता है और वाहन दुर्घटना की संभावना भी बनती है।
उपाय प्रतिदिन स्नानोपरांत भगवान शनि मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करें। और शिवलिंग पर जल चढाएं। साथ ही भगवान शनि देव का नियमित तेलाभिषेक करें। शनि पत्नी के नाम वाले इस मंत्र- ओम् शं शनैश्चराय नम: ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया। कंटकी कलही चाथ तुरंगी महिषी अजा ओम् शं शनैश्चराय नम:॥
कन्या राशि - कन्या राशि में शनि लग्न का स्वामी होता है। लग्न में स्थित शनि कन्या राशि वालों को मध्यम फल प्रदान करेगा। जहां एक ओर धर्म की ओर आगे बढने की रूचि बढेगी, आत्म चिंतन बढेगा। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त होगा। सामाजिक कार्यो को करने का अवसर मिलेगा। सरकार से लाभ और उच्च अधिकारियों से मधुर संबंध बनेंगे। व्यवसायिक सफलता का प्रबल योग परंतु यदि आपने नैतिकता का दामन छोड दिया तो पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पडेगा। भाई-बहनों से विरोध झेलना पडेगा। सरकार से भी हानि पहुंच सकती है।
उपाय प्रतिदिन शनि कवच का पाठ करें व सरसों के तेल से प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग का नियमित अभिषेक व पूजन करें। शनिवार का व्रत करें और ओम् शं शनैश्चराय नम: का पांच माला जप करें और हनुमान चालीसा व शनि चालीसा का पाठ करें।
तुला राशि तुला राशि वालों के लिए शनि केंद्र और त्रिकोण का स्वामी होकर द्वादश भाव में गोचर कर रहा है। तुला राशि वालों के लिए इस भाव में बैठा शनि मेहरबान होता है। व्यवसाय मे अनुकूल परिस्थितियां बनेगी। व्यवसाय संबंधी परेशानियों का निवारण होगा। मनोनुकूल व्यवासायिक संबंधों के कारण नई व्यवसायिक उपलब्धियां प्राप्त होगी। आध्यात्मिक व धर्म-कर्म के कार्यो में रुचि बढेगी। वैवाहिक संबंधों में अनुकूलता आएगी। परंतु अनावश्यक खर्चो एवं अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण कुछ परेशानियों का सामना भी करना पड सकता है।
उपाय हर रोज नित्यक्रम निवृत्त होकर पाशुपत स्तोत्र के सात पाठ करें। प्रत्येक शनिवार को बंदरों को केला, मीठी खील, गुड एवं काले चने खिलाने से भी शनि जनित प्रतिकूल प्रभावों का शमन होता है।
वृश्चिक राशि वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि तीसरे व चतुर्थ भाव का स्वामी होकर लाभ भाव में गोचर कर रहा है और यह भाव उपचय वृद्धिकारक है। इस भाव में शनि बहुत अनुकूल फल प्रदान करता है। व्यवसायिक बुलंदियों को छूने का सुअवसर प्राप्त होगा। अनावश्यक विघ्न और समस्याओं का निवारण होगा। आर्थिक लाभ स्त्रोत बढेंगे। पारिवारिक वातावरण मनोनुकूल रहेगा। नौकरी में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे। कारोबार में मनोनुकूल सफलताओं का योग है। संतान पक्ष की ओर सुयश बढेगा। नवीन कारोबारी योजनाएं मनोनुकूल फल देगी।
उपाय हर रोज नित्यक्रम से निवृत्त होकर दशरथ कृत स्तोत्र के पांच पाठ सुबह-शाम करें। गौशाला में श्रद्धानुसार साबुत मसूर की दाल का दान दें।
धनु राशि धनु राशि वालों के लिए शनि धन और परक्रम भाव का स्वामी होकर दशमभाव में गोचर कर रहा है और दशम भाव का कारक शनि है। यहां शनि अनुकूल और शुभ फल प्रदान करता है क्योंकि दशम भाव भी उपचय भाव है। रोजगार संबंधी समस्याओं का निवारण होगा। पारिवारिक सदस्यों का मनोनुकूल सहयोग प्राप्त होगा। कारोबार में लाभ मार्ग प्रशस्त होगा। परिवार में मांगलिक कार्य संपन्न होगा। किए गए प्रयासों में पूर्ण सफलता प्राप्त होगी। शिक्षा के लिए विदेश यात्रा का प्रबल योग। जीवन में नवनिर्माण का संकेत दे रहा है शनि। परंतु संतान पक्ष को लेकर धनु राशि वालों को प्रबल समस्या का संकेत नजर आ रहा है।
उपाय प्रतिदिन मंगलकारी शनि मंत्र की पांच माला सुबह-शाम करें। गौशाला में देसी चने श्रद्धानुसार दान करना लाभकारी रहेगा।
मकर राशि
मकर राशि वालों के लिए शनि लग्न और धन भाव का स्वामी होकर नवम भाव यानि धर्म भाव में गोचर कर रहा है नवम भाव पिता यानि सूर्य का कारक भाव है। पिता और पुत्र का यहा मिलन है। पिछली संपूर्ण परेशानियों का निवारण होगा। व्यवसाय में किए गए प्रयासों का शुभ फल प्राप्त होगा। विवादित मसलों व कानूनी समस्याओं के निवारण की स्थिति बनेगी। रिश्तेदारों मित्रों और जानकारों से अचानक मदद मिलेगी और समस्याओं का निवारण होगा। परंतु व्यवसाय नौकरी और परिवार के लिए थोडा समय देना होगा।
उपाय हर रोज घर में चौमुखा घी का दीपक जलाकर शनि कवच के पांच सुबह-शाम व ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। श्रद्धानुसार बाजरा गौशाला में दान दें।
कुंभ राशि कुंभ राशि वालों के लिए शनि द्वादश भाव और लग्न का स्वामी होकर अष्टम भाव में गोचर कर रहा है। विद्वानों का मत है कि अष्टम भाव में शनि अनुकूल फल प्रदान नहीं करता लेकिन कई वर्षो के अनुभव के बाद मैं ये कहना चाहिता हूं कि अष्टम में शनि कुंभ राशि वालों के लिए•शोध और साधना में रूचि बढेगी। लंबी बीमारियों से छुटकारा मिलेगा। बुजुर्गो का सहयोग और सरकार से लाभ। भूमि संबंधी कार्यो में विशेष लाभ। पारिवारिक वातवारण मनोनुकूल होगा। आर्थिक स्थिति सुदृढ होगी। कुंभ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि है इसलिए शनि कुंभ राशि वालों को शुभ फल प्रदान करेगा।
उपाय हर रोज घर में तेल का दीपक जलाकर दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। शनिवार को बड एवं पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पहले कडवे तेल का दीपक जलाकर उसकी दूध धूप-दीप आदि से पूजा करना लाभप्रद रहता है।
मीन राशि मीन राशि वालों के लिए शनि ग्यारहवें और द्वादश भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में गोचर कर रहा है। यहां शनि विद्वानों के मत से इस भाव को पीडित करता है। लेकिन भावार्थ भवम की दृष्टि से सप्तम भाव का कारक भी शनि है इसलिए इस भाव को भी शनि मजबूत करेगा। पिछली संपूर्ण पारिवारिक, व्यवसायिक और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का निवारण होगा। पारिवारिक सहयोग व सामंजस्य बढेगा। पारिवारिक लोगों के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह होगा। कार्यो को पूरा करने के लिए अपनों का पूर्ण सहयोग रहेगा। परिश्रम और लग्न से किए गए संपूर्ण कार्य सफलता देंगे। परंतु मीन राशि वालों को वाणी पर संयम रखना होगा। नैतिकता का दामन पकडकर रखना होगा। साझेदारों के साथ ईमानदारी बरतना अति आवश्यक होगा।
उपाय हर रोज नित्यक्रम से निवृत्त होकर शास्त्रोक्त शनि मंत्र की पांच माला सुबह-शाम करें। भगवान सूर्य को जल चढाएं। 21 बार सूर्यपुत्रों दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मंदचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:॥ मंत्र का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होंगे और सभी बाधाएं दूर कर देते हैं।                                                                                                                        
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Thursday, November 24, 2011

ऐसा हो वास्तु सम्मत आफिस/कार्यालय


ऐसा हो वास्तु सम्मत आफिस/कार्यालय-
आजकल व्यावसायिक गतिविधियां आफिस बनाकर संचालित की जाती हें , व्यवसाय में जबर्दस्त प्रतियोगिता होने के कारण, सफलता पाने के लिए हर उद्यमी को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। ऐसे कठिन दौर में आफिस का निर्माण व साज-सज्जा वास्तुशास्त्र्र के सिद्धांतों के अनुसार करना बहुत लाभदायक रहता है।
जो आफिस वास्तु अनुकूल नहीं होते हैं, उस जगह कार्य करने वाले कर्मचारियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है, कर्मचारियों में चिड़चिड़ापन रहता है, अधिकारियों व कर्मचारियों के मध्य विवाद होते रहते हैं। इसके अलावा आफिस में कई प्रकार की समस्याएं चलती रहती हैं। इसके विपरीत यदि आॅफिस वास्तु अनुकूल होता है, तो वहां का वातावरण खुशनुमा रहता है, वहां कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी तनाव मुक्त रहते हैं, उनकी कार्यक्षमता अच्छी होती है, वे मिलजुल कर काम करते हुए प्रसन्न रहते हैं और समय-समय पर योग्यतानुसार प्रमोशन भी प्राप्त करते हैं। अतः आफिस के लिए वास्तु अनुरूप स्थान लेकर आफिस की सजावट इस प्रकार करें–
आफिस के बाहर लकड़ी, प्लास्टिक या किसी धातु से बना आफिस का खूबसूरत साइनबोर्ड अवश्य लगाना चाहिए, जो आपके यहां आने जाने वालों को अच्छी तरह दिखाई दे सके। आकर्षक साइनबोर्ड लगाने से आफिस की प्रसिद्धि में वृद्धि होती है।
आफिस के मुख्य अधिकारी का कक्ष नैऋत्य कोण में होना चाहिए, तथा कक्ष का आकार वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए। विषम आकार का कभी नहीं होना चाहिए।
किसी भी कर्मचारी को आफिस में टायलेट के दरवाजे की ओर मुंह करके नहीं बैठना चाहिए।
अधिकारियों के कक्ष के साथ यदि टायलेट हो, तो ध्यान रहे वह कक्ष के ईशान कोण में नहीं होना चाहिए।
आफिस में किसी भी प्रकार की बंद पड़ी घड़ी, टेलीफोन, फैक्स, फोटोकापी मशीन इत्यादि नहीं होने चाहिए। यह बंद पड़ी चीजें वहां के कर्मचारियों के जीवन में रूकावटें पैदा करती हैं।
आफिस की टेबल इस प्रकार रखी जानी चाहिए कि उस पर कार्य करने वाला दरवाजे से अंदर प्रवेश करने वाले को भली-भांति देख सके।
आफिस में दरवाजे के ठीक सामने टेबल नहीं रखनी चाहिए, इससे वहां कार्यरत कर्मचारी को मानसिक तनाव रहने से उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
अधिकारीयों व कर्मचारियों को किसी बीम या परछत्ती के नीचे बैठकर कार्य नहीं करना चाहिए, इससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। यदि जगह के अभाव के कारण बीम के नीचे बैठकर कार्य करना मजबूरी हो, तो फेंग शुई के अनुसार बीम के दोनों ओर 2 बांसुरी लाल रिबन में बांधकर 450 कोण में लगाकर इस दोष को दूर किया जा सकता है।
टेबल का आकार कक्ष के आकार के अनुपात में न बहुत छोटा हो न बहुत बड़ा, बहुत बड़ा होने से वहां कार्य करने वाला हमेशा थकान महसूस करता है, और बहुत छोटी टेबल आत्मविश्वास में कमी लाती है।
टेबल पर टेलीफोन व फैक्स टेबल के आग्नेय कोण में रखने चाहिए। पानी का गिलास टेबल के ईशान कोण में रखना चाहिए।
आफिस के किसी भी कक्ष में कम्प्यूटर आग्नेय कोण में रखना चाहिए।
आफिस में फाइल, स्टेशनरी व अन्य सामान रखने की अलमारियां प्रत्येक कक्ष की दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखनी चाहिए।
आफिस के स्टाफ के लिए मनोरंजन कक्ष आफिस की वायव्य दिशा में होना चाहिए।
आफिस के किसी भी कमरे की दीवारों एवं परदों पर कहीं भी हिंसक पशु-पक्षियों के, उदासी भरे, रोते हुए, डूबते हुए सूरज या जहाज के, ठहरे हुए पानी की तस्वीरें, पेंटिंग या मूर्तियां न लगाएं, यह कर्मचारियों के जीवन में निराशा पैदा करती हैं। जिससे कार्य क्षमता प्रभावित होती है। अकाउंट विभाग उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए, और अकाउंटेंट को उत्तरोन्मुखी होकर बैठना चाहिए।
कैशियर का कक्ष आफिस की उत्तर दिशा में इस प्रकार होना चाहिए कि, कैशियर मुख्य द्वार से प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर दृष्टि रख सके।
आफिस की सेफ अर्थात् कैश बाक्स दक्षिण की दीवार से लगाकर रखनी चाहिए, ताकि सेफ का दरवाजा उत्तर दिशा की ओर खुल सके।
स्वागत कक्ष आफिस के ईशान, उत्तर या पूर्व दिशा में बनाना चाहिए। स्वागत अधिकारी की बैठक व्यवस्था इस प्रकार हो कि, उसका मुंह उत्तर या पूर्व दिशा में रहे, ताकि आगंतुक का मुंह पश्चिम व दक्षिण दिशा में रहे।
मार्केटिंग व सेल्स विभाग अर्थात् आउटडोर काम करने वाले कर्मचारियों का कक्ष वायव्य कोण में बनाना शुभ होता है।
आफिस का डाक व संप्रेषण विभाग दक्षिण या पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
कांफ्रेंस हाल, आफिस के उत्तर या पश्चिम वायव्य दिशा में रखना चाहिए जहां अंडाकार मेज व 15-20 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था हो सके।
कांफ्रेंस हाल में प्रमुख अधिकारी की कुर्सी इस प्रकार रखनी चाहिए कि, वह पूर्व या उत्तर मुखी होकर इस प्रकार बैठे कि, कांफ्रेंस हाल में दरवाजे से आने-जाने वाले व्यक्ति पर निगाह रख सके।
इन साधारण किंतु चमत्कारिक वास्तुशास्त्र सिद्धांतों के आधार पर यदि आफिस का निर्माण किया जाऐ तो उत्तरोतर प्रगति संभव है।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0– 09024390067
E-Mail – dayanandashastri@yahoo.com,
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वास्तु खोलेगा आपकी समृद्धि के द्वार


वास्तु खोलेगा आपकी समृद्धि के द्वार—-
आइये जाने की वास्तु अनुसार मकान/भवन/आवासगृह में कहाँ क्या होना चाहिए ???
प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन आनन्दमय, सुखी व समृद्ध बनाने में हमेशा लगा रहता हैं । कभी-कभी बहुत अधिक प्रयास करने पर भी वह सफल नहीं हो पाता हैं । ऐसे में वह ग्रह शांति, अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करता हैं । परन्तु उससे भी उसे आशाअनुरूप फल प्राप्त नहीं होने पर वह अपने भाग्य को कोसता हैं और कहता हैं मैरे भाग्य में कुछ ऐसा ही लिखा हुआ हैं ।
जैसा की सर्वविदित हैं कि भाग्य और वास्तु का गहरा सम्बन्ध हैं यदि आपका भाग्य (कुण्डली) उत्तम हैं और यदि वास्तु (निवास) में कुछ त्रुटियां हैं तो मनुष्य उतनी प्रगति नहीं कर पाता जितनी करनी चाहिए अर्थात मनुष्य की समृद्धि में भाग्य एवं वास्तु का बराबर-बराबर सम्बन्ध होता हैं । ग्रह शांति देवी-देवताओं की पूजा अर्चना और प्रयत्नों के अतिरिक्त भी मनुष्य को एक विषय पर और ध्यान देना चाहिए और वह हैं उसके घर एवं दूकान की वास्तु । वास्तु दोष निवारण करने से मुनष्य के जीवन की पूर्ण काया पलट हो सकती हैं वह सभी सुख व साधनों को प्राप्त कर सकता हैं । मकान का निर्माण इस प्रकार करें जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो तो वह मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण हेतु उपयोग कर सकता हैं ।
वास्तु निर्माण कार्य वर्तमान समय में अत्यावश्यक हो गया हैं क्योंकि निर्माण के पश्चात् यदि वास्तु दोष निकले और तक मकान में तोड़-फोड करनी पड़े तो वह अत्यंत कष्टकारक होता हैं । आर्थिक बोझ भी बढ जाता हैं। अतः उसका ध्यान रखकर वास्तु निर्माण के पूर्व वास्तुकार से सलाह लेकर यदि भवन या मकान निर्माण करें तो वास्तु दोष से बच सकते हैं ।
जन्मकुंडली के ग्रहों की प्रकृति व स्वभाव अनुसार सृजन प्रक्रिया बिना लाग लपेट के प्रभावी होती हैं और ऐसे में अगर कोई जातक जागरूकता को अपनाकर किसी विद्वान जातक से परामर्श कर अपना वास्तु ठीक कर लेता हैं तो वह समृद्धि प्राप्त करने लगता हैं। बने हुए भवनों एवं नवनिर्माण होने वाले भवनों में वास्तुदोष निवारण का प्रयास करना चाहिए बिना तोड़-फोड़ के प्रथम प्रयास में दिशा परिवर्तन कर अपनी दशा को बदलने का प्रयास करें । यदि इसमें सफलता नहीं मिले तो पिरामिड एवं फेंगशुई सामग्री का उपयोग कर गृह क्लेश से मुक्ति पाई जा सकती हैं ।
आइये जाने की वास्तु अनुसार मकान/भवन/आवासगृह में कहाँ क्या होना चाहिए ??? यथा—
1 दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाफ्ट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में सड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें।
2 मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढि़या हैं। दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें , पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।
3 यदि सम्भव हो तो घर के बीच में चैक (बरामदा ) अवश्य छोड़े एवं उसे बिल्कूल साफ-स्वच्छ रखें । इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती हैं ।
4 घर का प्रवेश द्वार यथासम्भव पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष सीढियाॅ व रसोई नहीं होनी चाहिए । प्रवेश द्वार भवन के ठीक बीच में नहीं होना चाहिए। भवन में तीन दरवाजे एक सीध में न हो ।
5 भवन में कांटेदार वृक्ष व पेड़ नहीं होने चाहिए ना ही दूध वाले पोधे – कनेर, आॅकड़ा केक्टस, बांैसाई आदि । इनके स्थान पर सुगन्धित एवं खूबसूरत फूलों के पौधे लगाये ।
6 घर में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए काॅच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए ।
7 भवन में खिड़कियों की संख्या सम तथा सीढि़यों की संख्या विषम होनी चाहिए ।
8 भवन के मुख्य द्वार में दोनों तरफ हरियाली वाले पौधे जैसे तुलसी और मनीप्लान्ट आदि रखने चाहिए । फूलों वाले पोधे घर के सामने वाले आंगन में ही लगाए । घर के पीछे लेगे होने से मानसिक कमजोरी को बढावा मिलता हैं ।
9 मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए ।
10 मुख्य द्वार के सामने मन्दिर नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार की चैड़ाई हमेशा ऊँचाई की आधी होनी चाहिए ।
11 मुख्य द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए । द्वार के सामने कूड़ा कर्कट और गंदगी एकत्र न होने दे यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतिक हैं ।
12 रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए । गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए । रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए । रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे । रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए । झूठें बर्तन रसोई में न रखे ।
13 ड्राइंग रूम के लिए उत्तर दिशा उत्तम होती हैं । टी.वी., टेलिफोन व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण दक्षिण दिशा में रखें । दीवारों पर कम से कम कीलें प्रयुक्त करें । भवन में प्रयुक्त फर्नीचर पीपल, बड़ अथवा बेहडे के वृक्ष की लकड़ी का नहीं होना चाहिए ।
14 किसी कौने में अधिक पेड़-पौधें ना लगाए इसका दुष्प्रभाव माता-पिता पर भी होता हैं वैसे भी वृक्ष मिट्टी को क्षति पहुॅचाते हैं ।
15 घर का मुख्य द्वार छोटा हो तथा पीछे का दरवाजा बड़ा हो तो वहाॅ के निवासी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर सकते हैं ।
16 घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ नहीं होना चाहिए चाहे वह आंगन का हो, दीवारों का या रसोई अथवा शयनकक्ष का । दरवाजे एवं खिड़किया भी क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए । अन्य दरवाजों एवं खिडकी पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचे ।
17 मुख्य द्वार पर कभी दर्पण न लगायें । सूर्य के प्रकाश की और कभी भी काॅच ना रखे। इस काॅच का परिवर्तित प्रकाश आपका वैभव एवं ऐश्वर्य नष्ट कर सकता हैं ।
18 घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता हैं ।
19 भवन में सीढियाॅ पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती हैं । सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए । सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय अशुभ होता हैं । सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहाॅ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।
20 पानी का टेंक पश्चिम में उपयुक्त रहता हैं । भूमिगत टंकी, हैण्डपम्प या बोरिंग ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में होने चाहिए । ओवर हेड टेंक के लिए उत्तर और वायण्य कोण (दिशा) के बीच का स्थान ठीक रहता हैं। टेंक का ऊपरी हिस्सा गोल होना चाहिए ।
21 शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए । मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें । सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती हैं । शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे । उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें ।
22 भवन की दीवारों पर आई सीलन व दरारें आदि जल्दी ठीक करवा लेनी चाहिए क्योकि यह घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहती ।
23 घर के सभी उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, घडि़यां, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर आदि चलते रहने चाहिए। खराब होने पर इन्हें तुरन्त ठीक करवां लें क्योकि बन्द (खराब) उपकरण घर में होना अशुभ होता हैं ।
24 भवन का ब्रह्म स्थान रिक्त होना चाहिए अर्थात भवन के मध्य कोई निर्माण कार्य नहीं करें ।
25 बीम के नीचे न तो बैठंे और न ही शयन करें । शयन कक्ष, रसोई एवं भोजन कक्ष बीम रहित होने चाहिए ।
26 वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं ।
27 भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो ।
28 व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें । घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें । अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें ।
29 भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए । शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
30 दूकान में वायव्य दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अपना सेल काउंटर वायव्य दिशा में रखें, किन्तु तिजौरी एवं स्वयं के बैठने का स्थान नैऋत्य दिशा में रखें, मुख उत्तर या ईशान की ओर होना चाहिए ।
31 भवन के वायव्य कोण में कुलर या ए.सी. को रखना चाहिए जबकि नैऋत्य कोण में भारी अलमारी को रखना चाहिए । वायव्य दिशा में स्थायी महत्व की वस्तुओं को कभी भी नहीं रखना चाहिए ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि वास्तु के नियमों का पालन कर हम सुख एवं समृद्धि में वृद्धि कर खुशहाल रह सकते हैं । यदि दिशाओं का ध्यान रखकर भवन का निर्माण एवं भूखण्ड की व्यवस्था की जाए तो समाज में मान सम्मान बढ़ता हैं । इस प्रकार भारतीय वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों का पालन कर हम सुख एवं वैभव की प्राप्ति कर सकते हैं ।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
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आपको लगाने वाली चोट का कारण हें शनि देव..आइये जाने—


आपको लगाने वाली चोट का कारण हें शनि देव..आइये जाने—
हमारी छोटी-छोटी लापरवाहियों या किसी और की गलती के कारण हमें चोट लग जाती है। वैसे तो यह एक बहुत सामान्य सी बात है लेकिन इस प्रकार की चोट यदि लौहे से लगती है तो ये बात गंभीर हो जाती है। ज्योतिष आंकलन के अनुसार लौहे से चोट लगने के पीछे शनि देव/गृह का प्रभाव होता है।
शनिदेव सभी नौ ग्रहों में विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि इन्हें न्यायाधिश का पद प्राप्त है। शनि महाराज ही व्यक्ति के सभी अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। साढ़ेसाती और ढैय्या के काल में शनि राशि विशेष के लोगों को उनके कर्मों का फल देते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने जाने-अनजाने कोई गलत कार्य किया है तो शनि उसे वैसी ही सजा देते हैं। इसी वजह से इन्हें क्रूर ग्रह भी माना जाता है।
यदि आपको बार-बार लौहे की वस्तुओं से चोट लगती रहती है तो ध्यान रखें ज्योतिष के अनुसार यह गंभीर बात है। इसका सीधा इशारा यही है आपसे जाने-अनजाने कोई गलती हो गई है। ऐसे में लौहे से चोट लगाने के पीछे शनि का ही प्रभाव बताया जाता है। चूंकि लौहा शनि की प्रिय धातु है अत: इससे हमें किसी प्रकार का नुकसान होना शनि के नाराज होने की सूचना मात्र समझना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा बार-बार होता है तो उसे शनि के निमित्त विशेष पूजन आदि कार्य किया जाना चाहिए। प्रति शनिवार तेल का दान करें और भगवान शनि के दर्शन करें। कार्यों में पूरी तरह सावधानी रखें।

अपनी जन्म कुंडली से जानें विवाह में देरी/बाधा के योग —जन्म कुंडली से करें ग्रह-दोष निवारण——



 


अपनी जन्म कुंडली से जानें विवाह में देरी/बाधा के योग —जन्म कुंडली से करें ग्रह-दोष निवारण——
वर्तमान में युवक-युवतियां का उच्च शिक्षा या अच्छा करियर बनाने के चक्कर में अधिक उम्र के हो जाने पर विवाह में काफी विलंब हो जाता है। उनके माता-पिता भी असुरक्षा की भावनावश अपने बच्चों के अच्छे खाने-कमाने और आत्मनिर्भर होने तक विवाह न करने पर सहमत हो जाने के कारण विवाह में विलंब /देरी हो जाती है।
इस समस्या के निवारणार्थ अच्छा होगा की किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें।
ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं।
वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है।
इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं।
जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।
जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है।
सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।
अन्य योग निम्नानुसार हैं- —–
(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।
(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
(3) लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।
(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए।
(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में।
(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।
(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।
————————————————————————————–
विवाह में बाधक योग—–
जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थानों को अशुभ माना जाता है। मंगल, शनि, राहु-केतु और सूर्य को क्रूर ग्रह माना है। इनके अशुभ स्थिति में होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है।
-सप्तमाधिपति द्वादश भाव में हो और राहू लग्न में हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा होना संभव है।
-सप्तम भावस्थ राहू युक्त द्वादशाधिपति से वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है। द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहू की युति हो तो दांपत्य सुख में कमी के साथ ही अलगाव भी उत्पन्न हो सकता है।
-लग्न में स्थित शनि-राहू भी दांपत्य सुख में कमी करते हैं।
-सप्तमेश छठे, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो वैवाहिक सुख में कमी होना संभव है।
-षष्ठेश का संबंध यदि द्वितीय, सप्तम भाव, द्वितीयाधिपति, सप्तमाधिपति अथवा शुक्र से हो, तो दांपत्य जीवन का आनंद बाधित होता है।
-छठा भाव न्यायालय का भाव भी है। सप्तमेश षष्ठेश के साथ छठे भाव में हो या षष्ठेश, सप्तमेश या शुक्र की युति हो, तो पति-पत्नी में न्यायिक संघर्ष होना भी संभव है।
-यदि विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करके उपरोक्त दोषों का निवारण करने के बाद ही विवाह किया गया हो, तो दांपत्य सुख में कमी नहीं होती है। किसी की कुंडली में कौन सा ग्रह दांपत्य सुख में कमी ला रहा है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।
विवाह योग के लिये जो कारक मुख्य है वे इस प्रकार हैं-
सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है।
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
सप्तमेश बली है।
सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं,और गुरु से द्रिष्ट है।
सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
विवाह नही होगा अगर—–
सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
सप्तमेश नीच राशि में है।
सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
शुक्र बुध शनि तीनो ही नीच हों।
पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
विवाह में देरी—-
सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है,विवाह आधी उम्र में होता है।
चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो,सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है,यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो,कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो,तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो,और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों,परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो विवाह नही होता है,अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।
विवाह का समय—–
सप्तम या सप्तम से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
कन्या की कुन्डली में शुक्र से सप्तम और पुरुष की कुन्डली में गुरु से सप्तम की दशा में या अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश की महादशा में पुरुष के प्रति शुक्र या चन्द्र की अन्तर्दशा में और स्त्री के प्रति गुरु या मंगल की अन्तर्दशा में विवाह होता है।
सप्तमेश जिस राशि में हो,उस राशि के स्वामी के त्रिकोण में गुरु के आने पर विवाह होता है।
गुरु गोचर से सप्तम में या लगन में या चन्द्र राशि में या चन्द्र राशि के सप्तम में आये तो विवाह होता है।
गुरु का गोचर जब सप्तमेश और लगनेश की स्पष्ट राशि के जोड में आये तो विवाह होता है।
सप्तमेश जब गोचर से शुक्र की राशि में आये और गुरु से सम्बन्ध बना ले तो विवाह या शारीरिक सम्बन्ध बनता है।
सप्तमेश और गुरु का त्रिकोणात्मक सम्पर्क गोचर से शादी करवा देता है,या प्यार प्रेम चालू हो जाता है।
चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।
दाम्पत्य/वैवाहिक सुख के उपाय—-
१॰ यदि जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है। अतः जातक मंगल व्रत। मंगल मंत्र का जप, घट विवाह आदि करें।
२॰ सप्तम गत शनि स्थित होने से विवाह बाधक होते है। अतः “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मन्त्र का जप ७६००० एवं ७६०० हवन शमी की लकड़ी, घृत, मधु एवं मिश्री से करवा दें।
३॰ राहु या केतु होने से विवाह में बाधा या विवाहोपरान्त कलह होता है। यदि राहु के सप्तम स्थान में हो, तो राहु मन्त्र “ॐ रां राहवे नमः” का ७२००० जप तथा दूर्वा, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें। केतु स्थित हो, तो केतु मन्त्र “ॐ कें केतवे नमः” का २८००० जप तथा कुश, घृत, मधु व मिश्री से दशांश हवन करवा दें।
४॰ सप्तम भावगत सूर्य स्थित होने से पति-पत्नी में अलगाव एवं तलाक पैदा करता है। अतः जातक आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार से प्रारम्भ करके प्रत्येक दिन करे तथा रविवार कप नमक रहित भोजन करें। सूर्य को प्रतिदिन जल में लाल चन्दन, लाल फूल, अक्षत मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें।
५॰ जिस जातक को किसी भी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक ४४००० जप निम्न मन्त्र का दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख करें।
“ॐ पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।”
६॰ किसी स्त्री जातिका को अगर किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो श्रावण कृष्ण सोमवार से या नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए-
“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”
७॰ किसी लड़की के विवाह मे विलम्ब होता है तो नवरात्री के प्रथम दिन शुद्ध प्रतिष्ठित कात्यायनि यन्त्र एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित करें एवं यन्त्र का पंचोपचार से पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जइ लड़की स्वयं या किसी सुयोग्य पंडित से करवा सकते हैं।
“कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।”
८॰ जन्म कुण्डली में सूर्य, शनि, मंगल, राहु एवं केतु आदि पाप ग्रहों के कारण विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो गौरी-शंकर रुद्राक्ष शुद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित करवा कर निम्न मन्त्र का १००८ बार जप करके पीले धागे के साथ धारण करना चाहिए। गौरी-शंकर रुद्राक्ष सिर्फ जल्द विवाह ही नहीं करता बल्कि विवाहोपरान्त पति-पत्नी के बीच सुखमय स्थिति भी प्रदान करता है।
“ॐ सुभगामै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।।”
९॰ “ॐ गौरी आवे शिव जी व्याहवे (अपना नाम) को विवाह तुरन्त सिद्ध करे, देर न करै, देर होय तो शिव जी का त्रिशूल पड़े। गुरु गोरखनाथ की दुहाई।।”
उक्त मन्त्र की ११ दिन तक लगातार १ माला रोज जप करें। दीपक और धूप जलाकर ११वें दिन एक मिट्टी के कुल्हड़ का मुंह लाल कपड़े में बांध दें। उस कुल्हड़ पर बाहर की तरफ ७ रोली की बिंदी बनाकर अपने आगे रखें और ऊपर दिये गये मन्त्र की ५ माला जप करें। चुपचाप कुल्हड़ को रात के समय किसी चौराहे पर रख आवें। पीछे मुड़कर न देखें। सारी रुकावट दूर होकर शीघ्र विवाह हो जाता है।
१०॰ जिस लड़की के विवाह में बाधा हो उसे मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
११॰ लड़की के पिता जब जब लड़के वाले के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें तो लड़की अपनी चोटी खुली रखे। जब तक पिता लौटकर घर न आ जाए तब तक चोटी नहीं बाँधनी चाहिए।
१२॰ लड़की गुरुवार को अपने तकिए के नीचे हल्दी की गांठ पीले वस्त्र में लपेट कर रखे।
१३॰ पीपल की जड़ में लगातार १३ दिन लड़की या लड़का जल चढ़ाए तो शादी की रुकावट दूर हो जाती है।
१४॰ विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब हो और जातिकाएँ अपने अहं के कारण अनेल युवकों की स्वीकृति के बाद भी उन्हें अस्वीकार करती रहें तो उसे निम्न मन्त्र का १०८ बार जप प्रत्येक दिन किसी शुभ मुहूर्त्त से प्रारम्भ करके करना चाहिए।
“सिन्दूरपत्रं रजिकामदेहं दिव्ताम्बरं सिन्धुसमोहितांगम् सान्ध्यारुणं धनुः पंकजपुष्पबाणं पंचायुधं भुवन मोहन मोक्षणार्थम क्लैं मन्यथाम।
महाविष्णुस्वरुपाय महाविष्णु पुत्राय महापुरुषाय पतिसुखं मे शीघ्रं देहि देहि।।”
१५॰ किसी भी लड़के या लड़की को विवाह में बाधा आ रही हो यो विघ्नकर्ता गणेशजी की उपासना किसी भी चतुर्थी से प्रारम्भ करके अगले चतुर्थी तक एक मास करना चाहिए। इसके लिए स्फटिक, पारद या पीतल से बने गणेशजी की मूर्ति प्राण-प्रतिष्टित, कांसा की थाली में पश्चिमाभिमुख स्थापित करके स्वयं पूर्व की ओर मुँह करके जल, चन्दन, अक्षत, फूल, दूर्वा, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करके १०८ बार “ॐ गं गणेशाय नमः” मन्त्र पढ़ते हुए गणेश जी पर १०८ दूर्वा चढ़ायें एवं नैवेद्य में मोतीचूर के दो लड्डू चढ़ायें। पूजा के बाद लड्डू बच्चों में बांट दें।
यह प्रयोग एक मास करना चाहिए। गणेशजी पर चढ़ये गये दूर्वा लड़की के पिता अपने जेब में दायीं तरफ लेकर लड़के के यहाँ विवाह वार्ता के लिए जायें।
१६॰ तुलसी के पौधे की १२ परिक्रमायें तथा अनन्तर दाहिने हाथ से दुग्ध और बायें हाथ से जलधारा तथा सूर्य को बारह बार इस मन्त्र से अर्ध्य दें- “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्त्र किरणाय मम वांछित देहि-देहि स्वाहा।”
फिर इस मन्त्र का १०८ बार जप करें-
“ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय यामिनि। विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे।”
१७॰ गुरुवार का व्रत करें एवं बृहस्पति मन्त्र के पाठ की एक माला आवृत्ति केला के पेड़ के नीचे बैठकर करें।
१८॰ कन्या का विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो तो एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी-सी हल्दी, एक सिक्का डाल कर लड़की के सिर के ऊपर ७ बार घुमाकर उसके आगे फेंक दें। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।
१९॰ जो माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी पुत्रवधु सुन्दर, सुशील एवं होशियार हो तो उसके लिए वीरवार एवं रविवार के दिन अपने पुत्र के नाखून काटकर रसोई की आग में जला दें।
२०॰ विवाह में बाधाएँ आ रही हो तो गुरुवार से प्रारम्भ कर २१ दिन तक प्रतिदिन निम्न मन्त्र का जप १०८ बार करें-
“मरवानो हाथी जर्द अम्बारी। उस पर बैठी कमाल खां की सवारी। कमाल खां मुगल पठान। बैठ चबूतरे पढ़े कुरान। हजार काम दुनिया का करे एक काम मेरा कर। न करे तो तीन लाख पैंतीस हजार पैगम्बरों की दुहाई।”
२१॰ किसी भी शुक्रवार की रात्रि में स्नान के बाद १०८ बार स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का जप करें-
“ॐ ऐं ऐ विवाह बाधा निवारणाय क्रीं क्रीं ॐ फट्।”
२२॰ लड़के के शीघ्र विवाह के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को ७० ग्राम अरवा चावल, ७० सेमी॰ सफेद वस्त्र, ७ मिश्री के टुकड़े, ७ सफेद फूल, ७ छोटी इलायची, ७ सिक्के, ७ श्रीखंड चंदन की टुकड़ी, ७ जनेऊ। इन सबको सफेद वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु व्यक्ति घर के किसी सुरक्षित स्थान में शुक्रवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
२३॰ लड़की के शीघ्र विवाह के लिए ७० ग्राम चने की दाल, ७० से॰मी॰ पीला वस्त्र, ७ पीले रंग में रंगा सिक्का, ७ सुपारी पीला रंग में रंगी, ७ गुड़ की डली, ७ पीले फूल, ७ हल्दी गांठ, ७ पीला जनेऊ- इन सबको पीले वस्त्र में बांधकर विवाहेच्छु जातिका घर के किसी सुरक्षित स्थान में गुरुवार प्रातः स्नान करके इष्टदेव का ध्यान करके तथा मनोकामना कहकर पोटली को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। यह पोटली ९० दिन तक रखें।
२४॰ श्रेष्ठ वर की प्राप्ति के लिए बालकाण्ड का पाठ करे।
वास्तु दोष तो नहीं हें कारण आपके विवाह में देरी/बाधा का…????
आजकल अनेक अभिभावक अपने बच्चों की शादी./ विवाह को लेकर बहुत परेशान/चिंतित रहते हें और पंडितों तथा ज्योतिर्विदों के पास जाकर परामर्श/सलाह लेते रहते हें…किन्तु क्या कभी आपने सोचा की विवाह में विलंब के कई कारण हो सकते हैं.??? इनमे से एक मुख्य कारण वास्तु दोष भी हो सकता है। यदि आप भी अपनी संतान के विवाह बाधा / देरी की वजह से चिंतित हैं तो इन वास्तु दोषों पर विचार करें-
1- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें उनको उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। इससे विवाह के लिए रिश्ते आने लगते हैं।उस कमरे में उन्हें सोते समय अपना सर हमेशा पूर्व दिशा में रखना चाहिए…
2- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें को ऐसे कक्ष में नहीं रहना चाहिए जो अधूरा बना हुआ हो अथवा जिस कक्ष में बीम लटका हुआ दिखाई देता हो।
3- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें तो उनके शयन कक्ष/ कमरे एवं दरवाजा का रंग गुलाबी, हल्का पीला, सफेद(चमकीला) होना चाहिए।
4- जिन विवाह योग्य युवक-युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा हें तो उन्हें विवाह के लिए अपने कमरे में पूर्वोत्तर दिशा में पानी का फव्वारा रखना चाहिए।
5- कई बार ऐसा भी होता की कोई युवक या युवती विवाह के लिए तैयार/राजी नहीं होते हें हो तो उसके कक्ष के उत्तर दिशा की ओर क्रिस्टल बॉल कांच की प्लेट अथवा प्याली में रखनी चाहिए।

Tuesday, November 1, 2011

अगर चाहें दौलत के साथ नाम कमाना..तो यह गणेश मंत्र है सबसे असरदार

धनवान होने पर यह जरूरी नहीं कि आप मान, प्रतिष्ठा भी पा लें। क्योंकि इंसान के स्वभाव के मुताबिक धन गुण-दोष भी नियत करता है। धन कमाने के साथ अगर उदारता और विनम्रता बनी रहे तो इंसान यशस्वी भी बन सकता है। किंतु अहं का भाव अपयश का कारण बन जाता है। 

यही कारण है धर्मग्रंथों में लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए बुद्धिदाता श्री गणेश के कुछ विशेष मंत्रों के जप का महत्व बताया गया है। जिससे बुद्धि, ज्ञान, विवेक के साथ ही से धन, यश व ऐश्वर्य प्राप्त होता है। इन मंत्रों में यहां बताया जा रहा मंत्र धन व कारोबार, नौकरी में आ रही बाधाओं के फ ौरन अंत करने में बहुत असरदार माना गया है। 

भाद्रपद माह में गणेश पूजन के विशेष अवसर पर भगवान गणेश की गंध, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य पूजा के बाद नीचे लिखे मंत्र का स्मरण दरिद्रता से रक्षा की कामना के साथ करें - 

 श्रीं हीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नम: 

इसके बाद गणेश गायत्री मंत्र का ध्यान बहुत मंगलकारी होगा - 

 तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डा धीमहि तन्नो दन्ती: प्रचोदयात्।। 

- अंत में गणेश आरती और क्षमा प्रार्थना भी कर प्रसाद ग्रहण करें।

बोलें मात्र 1 अक्षर के गणेश मंत्र..आएगा सफलताओं का सैलाब

भगवान गणेश आदिदेव माने जाते हैं। इसलिए श्री गणेश परब्रह्म के पांच अलग-अलग रूपों में एक व प्रथम पूज्य भी हैं। हर शास्त्र ईश्वर की इन शक्तियों के कण-कण में बसे होने का संदेश देकर देवत्व भाव को अपनाने की सीख देता है। किंतु सांसारिक बंधन से स्वार्थ या दोषों के वशीभूत होकर हर जीव भटककर कलह और संताप पाता है। 

ऐसी ही परेशानियों या मुश्किलों को सामना हम हर रोज घर या बाहर उठते-बैठते करते हैं। जिनसे छुटकारें के लिए अनेक तरीके अपनाते हैं। इनमें शास्त्रों में परब्रह्म स्वरूप भगवान गणेश के विराट रूप व शक्ति द्वारा जीवन को सफल व कलहमुक्त बनाने के लिए गणेश के बीज मंत्रों के स्मरण का भी महत्व है, जो कार्य व मनोरथसिद्धि में शक्तिशाली और असरदार भी माने गए हैं। 

खास बात यह है कि पूजा-उपासना के अलावा अचानक मुसीबतों के वक्त भी मन ही मन इनका स्मरण संकटमोचन व कामयाबी का अचूक उपाय है। जानते हैं कौन-से ये छोटे किंतु प्रभावी गणेश एकाक्षरी बीज मंत्र - 

- गं 

- ग्लौं और 

- गौं 

शास्त्रों के मुताबिक ये एकाक्षरी मंत्र अन्य गणेश नाम मंत्रों के साथ लेने पर बहुत ही मंगलकारी व मनोरथसिद्ध करने वाले हैं।

ऐसे सिद्ध करें काली हल्दी, बेशुमार दौलत मिलेगी

तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का उपयोग अनेक क्रियाओं में किया जाता है लेकिन इसके पहले इसे सिद्ध करना पड़ता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

- धन प्राप्ति के लिए काली हल्दी यानी हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

- सुबह सूर्यादय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र हो जाएं।

- स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्योदय होते ही आसन पर बैठें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। ऐसा स्थान चुनें, जहां से सूर्यदर्शन में बाधा न आती हो।

- इसके बाद काली हल्दी की गाँठ का पूजन धूप-दीप से पूजा करें। उदय काल के समय सूर्यदेव को प्रणाम करें। आपके समक्ष रखी काली हल्दी की गाँठ को नमन कर भगवान सूर्यदेव के मंत्र 'ओम ह्रीं सूर्याय नम:' का 108 बार माला से जप करें।

- यह प्रयोग नियमित करें ।



- पूजा के साथ-साथ अष्टमी तिथि को यथासंभव उपवास रखें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं। 

- हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धन लाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है। 

पैसे के साथ मिलेगा सुख भी, जब करेंगे यह उपाय


जिन लोगों के पास पैसा नहीं है वे सदैव धन अर्जित करने का प्रयास करते रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास धन-संपत्ति तो बहुत है लेकिन फिर भी वे सुखी नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि यदि आप समृद्ध हैं तो सुखी भी होंगे। दोनों का एक साथ मिलना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि अगर पैसा है तो उसके साथ अन्य बहुत ही परेशानियों भी रहती है। यदि आप चाहते हैं कि आपके घर समृद्धि के साथ सुख का भी वास हो तो नीचे लिखे उपाय करें-

उपाय

1- शाम के समय घर में झाड़ू-पोंछा न लगाएं।

2- गुरुवार के दिन किसी विवाहित महिला को सुहाग की सामग्री भेंट करें। संभव हो तो ऐसा हर गुरुवार को करें।

3- चींटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं।

4- चैक बुक, पास बुक, पैसे के लेन-देन संबंधी कागजात, पूंजी निवेश संबंधी कागजात आदि श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र आदि के समीप रखें।

5- व्यापार संबंधी लेखा-जोखा रखनी वाली किताब(रोकड़) पर केसर के छींटे अवश्य लगाएं।

6- दीपावली की रात या ग्रहण काल में एक लौंग, एक इलाइची जलाकर भस्म बना लें। इस भस्म को देवी-देवता के चित्र और यदि यंत्र हो तो उन पर लगा कर रखें।

7- किसी सूर्य के नक्षत्र में ऐसे पेड़ की टहनी तोड़ कर लाएं जिस पर चमगादड़ों का स्थाई निवास हो। इस टहनी को अपने बिस्तर के नीचे रख कर सोएं।

इन उपायों को करने से आपका जीवन सुखी व समृद्धिशाली होगा।

इनकम बढ़ाने का यह भी है आसान उपाय


वर्तमान समय में जिस तरह मंहगाई बढ़ रही है। इनकम उसकी अपेक्षा बहुत कम है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके आय का कोई निश्चित स्त्रोत नहीं होता। ऐसे में उनके लिए जीवन-यापन एक बड़ी समस्या बन जाती है। यदि नीचे लिखे उपाय को विधि-विधान पूर्वक किया जाए तो आय का स्त्रोत स्थाई हो जाएगा साथ ही उसमें बढ़ोत्तरी भी होगी।

उपाय

पांच कमल बीज व पांच लाल फूलों को एक पीले कागज पर रखें तथा कमल के फूल पर यह मंत्र 21 बार कुंकुम से लिखें-

ऊँ श्रीं शिवत्वं श्रीं ऊँ

इस कागज पर कमल बीजों और फूलों को लपेट कर बुधवार को रात्रि के समय किसी तिराहे पर डाल दें।

इस उपाय को करने से शीघ्र ही आपकी आमदानी का स्त्रोत स्थाई हो जाएगा और उसमें बढ़ोत्तरी भी होगी।

तिजोरी भरी रखना चाहते हैं तो यह उपाय करें

कुछ लोग लोग होते हैं जो जीवन में कितना भी प्रयास करें लेकिन उनकी पैसों की जरुरत कभी खत्म ही नहीं होती। ऐसे में मेहनत के साथ-साथ यदि धन की देवी लक्ष्मी की उपासना भी जाए तो ऐश्वर्य और सुख-शांति प्राप्त की जा सकती है। यदि आप भी अपने भाग्य का लिखा बदलना चाहते है तो नीचे लिखा यह उपाय करें-

उपाय

- शुक्ल पक्ष के किसी शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर बाजोट (लकड़ी के पटिए) पर लाल कपड़ा बिछाएं उस पर लक्ष्मीजी की तस्वीर रखें।

- उसके बाद उस पर एक मोती शंख भी रखें।

- अब नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए एक-एक चावल मोती शंख पर चढ़ाते जाएं।

मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दारिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:।।

- इस प्रकार कम से कम पांच माला जप अवश्य करें।

- उसके बाद यह मोती शंख लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रखें।

- यह मंत्र जप कुश के आसन पर बैठकर करें। जप के लिए कमलगट्टे की माला का उपयोग करें।

इस प्रयोग के बाद आप देखेंगे कि आपकी तिजोरी में लगातार धन की वृद्धि होती रहेगी और आपका जीवन धन-धान्य से संपूर्ण रहेगा।

मंगलवार को करें यह उपाय, होगा मंगल ही मंगल


भगवान हनुमान भक्तों की हर मनोकामना शीघ्र ही पूरी कर देते हैं। यदि मंगलवार के दिन हनुमानजी की विशेष पूजा, टोटका या उपाय करें तो इसका शीघ्र ही शुभ फल प्राप्त होता है। ऐसा ही एक विशेष कामनापूर्ति उपाय इस प्रकार है-

मंगलवार को तेल, बेसन और उड़द के आटे से बनाई हुई हनुमानजी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करके तेल और घी का दीपक जलाएं तथा विधिवत पूजन कर पूआ, मिठाई आदि का भोग लगाएं। इसके बाद 27 पान के पत्ते तथा सुपारी आदि मुख शुद्धि की चीजें लेकर इनका बीड़ा बनाकर हनुमानजी को अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र का जप करें-

मंत्र- नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।

फिर आरती, स्तुति करके अपने इच्छा बताएं और प्रार्थना करके इस मूर्ति को विसर्जित कर दें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर व दान देकर सम्मान विदा करें। यह उपाय करने से शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूरी होगी।

अगर आप पैसों की कमी से परेशान हैं तो यह टोटका करें


जीवन निर्वाह के लिए पैसों की अहमियत उतनी ही होती है जितनी जिंदा रहने के लिए सांस लेने की। जैसे बिना सांस लिए जीना संभव नहीं है उसी तरह धन के अभाव में जीवन निर्वाह करना किसी सजा से कम नहीं है। इंसान की जिंदगी में कई बार ऐसा समय आता है जब उसे पैसों की तंगी घेर लेती है। यदि आप भी पैसे की कमी से परेशान हैं तो नीचे लिखा टोटका शुक्ल पक्ष के किसी शुक्रवार को करें।

टोटका

सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर उत्तर दिशा में मुंह रख कर बैठें। सामने बाजोट(पटिया) रखें व उस पर पीला कपड़ा बिछाएं। अब बाजोट पर गेहूं की ढेरी बनाएं और उस पर 7 गोमती चक्र स्थापित करें। अब उस पर कुंकुम का तिलक करें और हर चक्र पर एक-एक सिक्का अर्पित करें। अब फूल चढ़ाकर धूप-दीप करें और फल अर्पित करें। अब नीचे लिखे मंत्र की 7 माला जप करें।

मंत्र- ऊँ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:

हर माला जप की समाप्ति पर हर चक्र पर एक फूल अर्पित करें। दूसरे दिन यह सभी सामग्री ले जाकर किसी सुनसान स्थान पर रख आएं। आपके जीवन से धन संबंधी समस्याओं का निराकरण हो जाएगा।

 

सफलता चाहिए तो अवश्य करें यह उपाय

जीवन में सफलता के क्या माएने होते हैं यह वही इंसान बता सकते है जिसने कभी सफलता या असफलता का स्वाद चखा हो। सफलता पाने की इच्छा तो हर कोई रखता है लेकिन यह सबके नसीब में नहीं होती। यदि आप किसी कार्य में सफल होने चाहते हैं तो उसके लिए नीचे लिखा उपाय करें-

उपाय

बुधवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पश्चिम दिशा में मुख करके बैठ जाएं और सामने बाजोट(पटिए) पर लाल कपड़ा बिछकर उस पर गेहूं से स्वस्तिक बनाएं। इस स्वस्तिक पर एक थाली रखकर उस पर गं लिखें। अब इस गं अर्थात गणेशजी के बीज मंत्र की पूजा कर इसके ऊपर श्वेतार्क गणपति एवं एक लघु नारियल रख दें। लघु नारियल व श्वेतार्क गणपति स्थापित कर उसके आस-पास गोलाकार घेरे के समान 7 बिंदिया कुंकुम की लगाएं एवं नीचे लिखे मंत्र को जपते हुए उस पर एक-एक लक्ष्मी कारक कौड़ी रख दें। 

मंत्र- ऊँ सर्व सिद्धि प्रदोयसि त्वं सिद्धि बुद्धिप्रदो भव: श्री

अब सभी कौडिय़ों पर कुंकुम व चंदन से तिलक करें, चावल चढ़ाएं, फूल चढ़ाएं। अगले दिन किसी कुंवारी कन्या को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा देकर विदा करें। श्वेतार्क गणपति को पूजन स्थान पर स्थापित करें। कौडिय़ों एवं लघु नारियल को उसी वस्त्र में बांधकर जल में प्रवाहित कर दें।

किस्मत का दरवाजा खोलता है ये उपाय


हर इंसान की चाहत होती है कि उसे मान-सम्मान, यश, वैभव और धन-दौलत मिले। लेकिन सभी की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती। अगर आप चाहते हैं यह सब आपको मिले तो यह उपाय करें। इससे आपका सौभाग्य बढ़ेगा।

उपाय

श्रेष्ठ मुहूर्त देखकर उस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो लें। अब स्नान कर साफ वस्त्र पहन लें और उसके ऊपर पीला वस्त्र भी अवश्य पहनें। किसी शांत स्थान या घर के किसी शांत कमरे में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ऊन के आसन पर चावल बिखेरें। इन चावलों पर मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का सम्मिलित चित्र स्थापित करें।

इसके बाद पंचामृत का तिलक करें और आरती उतारें। तीन हकीक और सात गोमती चक्र अर्पित करें। फूल चढ़ाएं और मावे का प्रसाद चढ़ाएं। धूप-दीप और अगरबत्ती दिखाएं। अब इस हकीक की माला से इस मंत्र का 1188 बार उच्चारण करें अर्थात 21 माला।

मंत्र-

ऊँ श्रीं कृं क्षौं सिद्धये ऊँ

मंत्र जपते समय बीच में किसी से कोई बात न करें। अब मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और गणपति देव का स्मरण करें और प्रार्थना करें कि आपका भविष्य उज्जवल हो, आपको सफलता मिले और सौभाग्य की प्राप्ति हो। साधना समाप्ति के बाद पूजन सामग्री किसी लक्ष्मी मंदिर में चढ़ा दें। चित्र पूजाघर में स्थापित कर प्रसाद बांट दें।

Wednesday, September 21, 2011


मृत्यु: दो प्रतिछवि-१
"मुक्ति का द्वार"
अब मैं समझ गई हे!
मौत, तुम कहीं भी,
कभी भी आ सकती हो,
तुम्हारा आना निश्चित है, अटल है,
जीवन में तुम ऐसे समाई हो,
जैसे आग में तपन, काँटे में चुभन !
सोच-सोच हर पल तुम्हारे बारे में,
मैं निकट हो गई इतनी,
सखी होती घनिष्ठ जितनी,
तुम बनकर जीवन दृष्टि,
लगी करने विचार- सृष्टि
भावों की अविरल वृष्टि !
मैं जीवन में 'तुमको',
तुम में लगी देखने 'जीवन'
इस परिचय से हुआ
अभिनव 'प्रेम मन्थन'
प्रेम ढला "श्रद्धा" में
"श्रद्धा" से देखा भरकर रूप तुम्हारा -
"सिद्धा" ! तुम्हारे लिए मेरा ये "प्यार"
बना जीवन "मुक्ति का द्वार" ! 
- दीप्ति गुप्ता


मृत्यु: दो प्रतिछवि-२
सहेली
'जीवन' मिला है जब से,
तुम्हारे साथ जी रही हूँ तब से,
तुम मेरी और मैं तुम्हारी
सहेली कई बरस से,
तुम मुझे 'जीवन' की ओर
धकेलती रही हो कब से,
"अभी तुम्हारा समय नहीं आया"
मेरे कान में कहती रही हो हँस के,
जब - जब मैं पूछती तुमसे,
असमय टपक पड़ने वाली
तुम इतनी समय की पाबंद कब से,
तब खोलती भेद कहती मुझसे,
ना, ना, ना, ना असमय नहीं,
आती हूँ समय पे शुरू से,
'जीवन' के खाते में अंकित
चलती हूँ, तिथि - दिवस पे
'नियत घड़ी' पे पहुँच निकट मैं
गोद में भर लेती हूँ झट से!
'जीवन' मिला है जब से,
तुम्हारे साथ जी रही हूँ तब से !
- दीप्ति गुप्ता


ऊँचाई
ऊँचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है।
          जमती है सिर्फ बर्फ,
          जो, कफन की तरह सफेद और,
          मौत की तरह ठंडी होती है।
          खेलती, खिल-खिलाती नदी,
          जिसका रूप धारण कर,
          अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
ऐसी ऊँचाई,
जिसका परस
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनन्दन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
          किन्तु कोई गौरैया,
          वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,
          ना कोई थका-मांदा बटोही,
          उसकी छांव में पलभर पलक ही झपका सकता है।

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफि नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बंटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
          जो जितना ऊँचा,
          उतना एकाकी होता है,
          हर भार को स्वयं ढोता है,
          चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
          मन ही मन रोता है।

जरूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य,
ठूंट सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
          भीड़ में खो जाना,
          यादों में डूब जाना,
          स्वयं को भूल जाना,
          अस्तित्व को अर्थ,
          जीवन को सुगंध देता है।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इन्सानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
          किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
          कि पाँव तले दूब ही न जमे,
          कोई कांटा न चुभे,
          कोई कलि न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़,
हों सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलापन का सन्नाटा।

          मेरे प्रभु!
          मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
          गैरों को गले न लगा सकूँ,
          इतनी रुखाई कभी मत देना।
- अटल बिहारी वाजपेयी


श्रीहत फूल पड़े हैं
अंगारों के घने ढेर पर
यद्यपि सभी खड़े हैं
किन्तु दम्भ भ्रम स्वार्थ द्वेषवश
फिर भी हठी खड़े हैं

            क्षेत्र विभाजित हैं प्रभाव के
            बंटी धारणा-धारा
            वादों के भीषण विवाद में
            बंटा विश्व है सारा
            शक्ति संतुलन रूप बदलते
            घिरता है अंधियारा
            किंकर्त्तव्यविमूढ़ देखता
            विवश मनुज बेचारा

झाड़ कंटीलों की बगिया में
श्रीहत फूल पड़े हैं
अंगारों के बने ढेर पर .....

            वन के नियम चलें नगरी में
            भ्रष्ट हो गये शासन
            लघु-विशाल से आतंकित है
            लुप्त हुआ अनुशासन
            बली राष्ट्र मनवा लेता है
            सब बातें निर्बल से
            यदि विरोध कोई भी करता
            चढ़ जाता दल बल से

न्याय व्यवस्थ ब्याज हेतु
बलशाली राष्ट्र लड़े हैं
अंगारों के बने ढेर पर .....

            दीप टिमटिमाता आशा का
            सन्धि वार्ता सुनकर
            मतभेदों को सुलझाया है
            प्रेमभाव से मिलकर
            नियति मनुज की शान्ति प्रीति है
            युद्ध विकृति दानव की
            सुख से रहना, मिलकर बढ़ना
            मूल प्रकृति मानव की

विश्वशान्ति संदेश हेतु फिर
खेत कपोत उड़े हैं
अंगारों के बने ढेर पर .....
- वीरेन्द्र शर्मा


नियति

रात की दस्तक दरवाज़े पर है
आज का दिन भी बीत गया है
कितना था उजाला फिर भी फिर से
अन्धियारा ही जीत गया है
एकान्त की चादर ओढ़ कर फिर से
मैं खुद में खोया जाता हूँ
आँखों के सामने यादों के रथ पर
मेरा ही अतीत गया है
सन्नाटों के गुन्जन में दबकर
अपनी ही आवाज़ नहीं आती मुझको
आँखों की सरहद पर लड़ता
आँसू भी अब जीत गया है
टूटे दर्पण के सामने बैठकर
मैं स्वयं को खोज रहा हूँ
यूँ ही बैठे बैठे जाने
कितना अरसा बीत गया है ... ॥

धीरे धीरे शाम चली आई

धीरे धीरे शाम चली आई
भीनी भीनी खुशबू छाई

इन्द्रधनुषी रँग मेरे मन का
मैं उसकी परछाई, छाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

बूँद पडे बारिश की, सौंधी
महक मिट्टी की भाई, भाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

भीगी मेरे तन की चादर
प्यास न पर बुझ पाई, पाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

कल जो बीज थे मैने बोए
हरियाली अब छाई, छाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

आँगन में कुछ फूल खिले हैं
रँगत मन को भाई, भाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

सुर से सुर मिल राग बना यह
मालकौंस रस बरसाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

सातरँगों की सरगम, कारी
कोयल ने है गाई, गाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥

महकाए मन मेरा देवी
भोर न ऐसी आई, आई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
- देवी नागरानी
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