Saturday, September 17, 2011

अहिंसक संघर्ष की आवाज

     सरकार के खिलाफ आवाज उठाना कितना दुष्कर होता है, यह इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित लिउ जियाओबो से बेहतर और कौन जान सकता है! राजनीतिक कैदी का जीवन बिता रहे जियाओबो चीन की एक अरब 30 करोड़ जनता के मौलिक अधिकारों के लिए कम्यूनिस्ट हुकूमत से अहिंसक रूप से लड़ रहे हैं। उनकी यह जंग 1989 में तब शुरू हुई, जब उन्होंने थ्यानमन चौक पर लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व किया था। जियाओबो का जन्म 28 दिसंबर, 1955 को चांगचुन शहर में हुआ। अधिकारों के लिए आवाज उठाने का बीज उनमें महज 14-15 वर्ष की उम्र में ही पड़ गया, जब उनके पिता उन्हें इनर मंगोलिया के बैनर तले चल रहे आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए अपने साथ ले गए थे। जियाओबो की रुचि साहित्य में भी है और उन्होंने कई निबंध भी लिखे हैं। उनका पहला लेख क्रिटिक ऑन च्वाइसेस काफी विवादित रहा, जो चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक ली जेहोयु के विचारों का खंडन करता है। कोलंबिया, हवाई और ओस्लो यूनिवर्सिटी में विजिटिंग स्कॉलर रहे जियाओबो पर बंदिशें इस कदर हैं कि जब उन्होंने चीन में मानवीय अधिकारों की स्थिति पर लिखना शुरू किया, तो न सिर्फ उनके लेखन पर नजर रखी गई, बल्कि उनका कंप्यूटर तक जब्त कर लिया गया। फाउंडेशन डे फ्रांस अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित जियाओबो देश में लोकतंत्र बहाली तक आंदोलन चलाने को प्रतिबद्ध हैं।

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