Saturday, September 17, 2011

रहीम को याद रखो

          हातिम हासम परम तपस्वी और वीतरागी संत थे। वह लोगों को दुर्गुणों का त्याग करके, सदाचार का पालन करने तथा खुदा को हर समय याद रखने का उपदेश दिया करते थे। एक बार वह भ्रमण करते हुए बगदाद पहुंचे। वहां का खलीफा उनकी त्याग-तपस्या और विद्वता की ख्याति सुन चुका था। उसने उन्हें महल में आने का निमंत्रण भेजा। संत हातिम अत्यंत विनम्र स्वभाव के थे। वह महल जा पहुंचे। खलीफा उनके उपदेश से बहुत प्रभावित हुआ। विदाई के समय उसने उन्हें स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं। संत हातिम ने कहा, ‘धन अल्लाह की इबादत में बाधा डालने वाला होता है। फकीर खुदा को भूलकर उस धन की रक्षा की चिंता में लगा रहता है। इसे अनाथों में बांट देना, मैंने स्वीकार कर लिया है।’ खलीफा संत की विरक्ति भावना को देखकर हतप्रभ रह गया।
संत हातिम कहा करते थे, ‘प्रत्येक काम करते समय याद रखना चाहिए कि उसे ईश्वर देख रहा है। मैं जो कुछ बोल रहा हूं, उसे ईश्वर सुन रहा है। इसलिए हर समय सत्कर्म ही करना चाहिए। सत्य और मृदु बोलना चाहिए, कभी अनर्गल या कटु शब्द मुंह से नहीं निकालना चाहिए। ईश्वर सेवा-परोपकार करने वाले, दुखियों पर दया करने वाले, सत्य व न्याय पर अटल रहने वाले पर ही दया करता है।’
वह कहते हैं, ‘रहम हमेशा रहमदिल पर इनायत करता है। जो दुखी को देखकर दुखी होता है, खुदा उसका हाथ थाम लेता है। जो दूसरों को तुच्छ मानता है, वह खुदा की निगाह में नीच है। इसलिए ऐसा कोई कर्म न करो, जिससे दूसरों को कष्ट हो।’

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