Sunday, September 18, 2011

       पूरब-पश्चिम का अंतर                                                                                                          गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर कुशल चित्रकार भी थे। एक बार उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया। फ्रांस के कला-मर्मज्ञ रोथेंस्टाइन तथा फ्रेंच आर्टिस्ट एन्ड्रीकारपेल्स गुरुदेव के मित्र थे। उन्होंने आग्रह किया कि वह अपने साथ कुछ चित्र भी लेते आएं। फ्रांस में उनके कला-चित्रों की धूम मच गई। अमेरिका में भी प्रदर्शनी लगाने का आग्रह किया गया। उनके व्याख्यान सुनकर बुद्धिजीवी लट्टू हो गए।
उन्होंने व्याख्यान में कहा, ‘अथाह भौतिक साधनों व अपार समृद्धि के बावजूद पश्चिम के देशों में मुझे आत्मिक संतोष व सच्चे सुख की अनुभूति नहीं हो पाई। वे सच्ची सुख-शांति के लिए पूर्व के आध्यात्मिक संस्कारों की ओर टकटकी लगाए हुए हैं।’ गुरुदेव ने एक समारोह में स्पष्ट कहा, ‘पश्चिम के विज्ञान का बोलबाला अवश्य है, किंतु मानवीय संवेदना लुप्त होती दिखाई दे रही है। विज्ञान की ओर असंतुलित दौड़ एक दिन विनाशकारी सिद्ध होगी।’
वाशिंगटन में एक बुद्धिजीवी ने गुरुदेव से प्रश्न किया, ‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘जब मैं काव्य सृजन करता हूं, उस समय मुझे ईश्वर का साक्षात्कार होता है।’ उनसे पूछा गया, ‘क्या आप ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण दे सकते हैं?’ गुरुदेव ने कहा, ‘इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में हम अनभिज्ञ हैं। किंतु क्या यह दावा कर सकते हैं कि वह सब नहीं है? इसलिए ईश्वर को प्रत्यक्ष देखने के बजाय हम विभिन्न समय में उसकी कृपा की अनुभूति करते हैं।’
बुद्धिजीवी उनका तर्क सुन उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम कर चला गया।

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