Saturday, September 17, 2011

खुद को जानना भी भक्ति है

मेरा मानना है कि अध्यात्म या ईश्वर के प्रति भक्ति के पीछे हम खुद को पहचानने की कोशिश करते हैं, जो बाहर से देखने में ईश्वर की खोज लगती है। इस तरह हम अपने जीवन की कई कठिन समस्याओं को सरल बना लेते हैं। दरअसल हम क्या करते हैं, कैसे रहते हैं, इसके बीच में अगर हम अपने सच्चे अंदरूनी रूप को बचा पाते हैं, तो हम भगवान को अनुभव करने के बहुत करीब होते हैं। क्योंकि ऐसा तभी हो सकता है, जब बाहर की चीजें आपकी आत्मा की सचाई पर असर न डालती हों। और अगर आप एक सच्चे इनसान बने रह पाते हैं, तो भगवान के करीब ही हैं।
         


आपका नजरिया कैसा है, यह भी आपकी भक्ति और भगवान को पाने की यात्रा पर असर डालता है। अगर आप दूसरों में अच्छाई ढूंढ़ने वाले शख्स हैं, तो निश्चित ही आप अच्छे लोगों के आसपास ही  रहे होंगे। यही तो भगवान है। भगवान पॉजिटिव हैं, सुंदर हैं और खुशी देने वाले हैं। इस कारण आपके मन में संतोष की भावना आती है और आप बेवजह की प्रतियोगिता करने में विश्वास करना छोड़ देते हैं। यह जीवन को शांति से भर देता है। क्योंकि यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आप कर्म कर रहे हैं, तो आपको उसका अच्छा फल मिलना ही मिलना है। मैं जब भी कठिनाई में घिरा     हूं, मैंने भगवान को महसूस किया है।

 

No comments:

Post a Comment