Saturday, September 17, 2011

सेवा से स्वर्ग

       एक दिन ईसा से एक भक्त ने प्रश्न किया, ‘मैं दो समय की रोटी जुटाने के लिए दिन भर काम में लगा रहता हूं। न किसी की सेवा कर पाता हूं, न कोई सत्कर्म। फिर मेरा कल्याण कैसे होगा?’ ईसा ने बताया, ‘जब तक तुम्हारे माता-पिता हैं, तुम प्रतिदिन अपने हाथों से उनकी सेवा करते रहो। अपनी ईमानदारी की कमाई से जो भी भोजन तैयार करो, पहले उन्हें खिलाकर फिर खुद खाओ, तुम्हारा जीवन स्वतः सार्थक हो जाएगा।’ 


ईसा कहते हैं, ‘गरीब से गरीब व्यक्ति भी सदाचार के पालन से स्वर्ग का भागी बन सकता है। उसे किसी भी तरह की हिंसा नहीं करनी चाहिए। बेईमानी और चोरी नहीं करनी चाहिए। किसी स्त्री के साथ व्यभिचार नहीं करना चाहिए तथा किसी के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए। इन चार संकल्पों का पालन करने मात्र से वह व्यक्ति स्वर्ग और मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।’


अय्यूब के उपदेश में कहा गया है, ‘पग-पग पर ईश्वर का भय मानना चाहिए। हमें विश्वास करना चाहिए कि हमारे सत्कर्मों व दुष्कर्मों को प्रभु देख रहा है। प्रभु का भय मानने वाला स्वतः पापों से बचा रहता है। अधिकांश मनुष्यों ने ईश्वर को नहीं देखा है, किंतु माना जाता है कि वह ज्योतिस्वरूप है। असंख्य भक्तों और संतों ने इस ज्योति की अनुभूति प्राप्त की है।’ ईसा अपने उपदेश में कहते हैं, ‘धनाढ्य व्यक्ति अहंकार और अन्य विकृतियों से बचा रहे, यह बहुत कम संभव होता है। इसलिए उतना ही धन संचय करना चाहिए, जिससे जीवन निर्वाह सहजता से होता रहे।’

No comments:

Post a Comment