Sunday, September 18, 2011

अमर रहेगी यह कथा

    जब स्टैन ली का काल्पनिक चरित्र स्पाइडरमैन दीवारों पर फांदना सीख रहा होगा, तब अपने देश में कपिश नाम का एक कार्टून किरदार एक डाल से दूसरे डाल पर कूदते-फांदते, लाखों-करोड़ों बच्चों के दिल में उतर चुका था। यह उस जमाने की बात है, जब अपने यहां कार्टून पढ़ने की चीज होती थी और जब जॉर्ज रेमी के नन्हें से कार्टून टिनटिन बनने का सपना देख-देखकर ऊब चुके थे बच्चे। वाल्ट डिज्नी के कार्टून कैरेक्टर डॉनल्ड को चाहने वाले होने लगे थे बूढ़े।


तभी एक चाचा आए थे, जिनके पास बच्चों के लिए बहुत कुछ था। कार्टून के नए किरदार, नई कहानियां और नया अंदाज। भारतीय कॉमिक्स की दुनिया एक झटके में बदल गई। कॉमिक्स न पसंद करने वाले कड़क शिक्षकों और कॉमिक्स को बरबादी का कारण मानने वाले सख्त मिजाज अभिभावकों का नजरिया भी बदल गया। अब बच्चों के बस्तों में, बिस्तरों पर और आपसी बहसों में चाचा के कार्टून किरदार धमा चौकड़ी मचाने लगे थे और अपने कार्टून किरदारों के साथ बच्चों के चाचा यानी अनंत पई भी घर-घर में मशहूर हो गए। इन कार्टूनोें के किरदार बच्चों को सिर्फ हंसा ही नहीं रहे थे, भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं को भी सुना रहे थे। पहली बार देश की भाषा में देश की मासूमियत को हंसी की नई खुराक मिली थी। अनंत पई पहले भारतीय थे, जिन्होंने भारतीय महाकाव्यों, पौराणिक और एतिहासिक कथाओं पर आधारित अमर चित्र कथा शृंखला की किताबों की शुरुआत की। लेकिन यह आसान काम नहीं था। बच्चों तक पहुंचने से पहले बड़ों की जेब तक पहुंचना जरूरी था। जोखिम न लेने को तैयार प्रकाशकों को मनाना था। क्योंकि जब अमर चित्र कथा को सामने लाने की बात हो रही थी, तब बाजार में अमेरिका के कार्टून किरदार टिनटिन की धूम थी। पई कई प्रकाशकों से निराश होकर लौट चुके थे, तभी इंडिया बुक हाउस के मालिक जी एल मीरचंदानी को पई की बातों से भरोसा हुआ और वह अमर चित्र कथा को छापने के लिए राजी हो गए।


उस वक्त पई टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में इंद्रजाल कॉमिक्स के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने अमर चित्र कथा के प्रकाशन के इरादे के साथ नौकरी छोड़ दी थी। अमर चित्र कथा का प्रकाशन 1967 में शुरू हुआ था। भारत के महापुरुष, वीर महिलाएं, प्रख्यात वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी और पौराणिक पात्र जैसी शृंखलाओं के साथ अमर चित्र कथा की कामयाबी ने भी एक इतिहास रच डाला। 


इतिहास से लेकर महापुरुषों के जीवन चरित्र तक, मायथॉलॉजी से लेकर हास्य विनोद तक, प्राचीन भारतीय महाकाव्यों से लेकर सुरुचिपूर्ण आधुनिक ग्रंथों तक का संसार समेटे पांच सौ के लगभग अमर चित्र कथाएं बेनटेन और मिकी माउस के जमाने में भी बच्चों को गुदगुदाती हैं, बच्चों में पढ़ने की आदत डालती हैं, तो इसके पीछे चाचा पई की वही सोच है। वह जानते थे कि बच्चों को पढ़ाना है, तो पहले उसे हंसाओ और फिर खेल-खेल में पढ़ाओ। फिर स्कूलों की लाइब्रेरी में अमर चित्र कथा की खरीद शुरू हो गई। इसके बाद तो इसकी बिक्री ने भी एक इतिहास रच डाला। आज भी कई भाषाओं में उसका प्रकाशन होता है और प्रति वर्ष उसकी 30 लाख से अधिक प्रतियां बिकती हैं।


1980 में अनंत पई ने हिंदी और अंगरेजी में बच्चों की एक लोकप्रिय पत्रिका ‘टिंकल’ का भी प्रकाशन शुरू किया। इस पत्रिका में अंकल पई के नाम से वह बच्चों के सवालों का जवाब देते थे। यह पत्रिका बच्चों में इस कदर मशहूर थी कि जिसके सवाल उसमें छप जाते थे, वह बच्चा मुहल्ले का हीरो तो हो ही जाता था। इसी दौरान अनंत पई ने शिकारी शंभू, कालिया द क्रो, तंत्री द मंत्री ,‘रामू और श्यामू’ और ‘कपिश’ जैसे लोकप्रिय कॉमिक किरदारों को जन्म दिया, जो वर्षों तक भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। आज जब पई हमारे बीच नहीं हैं, तो सबके सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हमारे देश के कार्टून किरदार भी अब विदेशी रंग में रंग जाएंगे। क्योंकि, तकनीकी विस्फोट और साधनों के लोकतंत्रीकरण से विदेशी कार्टून किरदारों की लंबी फौज हमारे घरों में आ घुसी है। ऐसे में अपने देश में कार्टून के किरदारों को जन्म देने वाले क्या उस रास्ते पर चलेंगे, जो अंकल पई ने दिखाया था। क्या डोरेमॉन के जमाने में शिकारी शंभू की कोई सुनेगा? कई पीढ़ी जिन कथाओं को पढ़ते हुए और जिन कार्टून किरदारों को देखते हुए जवान हुई है, क्या उन किरदारों को कोई याद करनेवाला नहीं होगा? शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि देश की भाषा में देश की मासूमियत को मुसकान देने के जो फॉरमूले चाचा पई ने दिए है, वे जल्दी नहीं चूकने वाले।

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